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________________ पहले इसमें 24 स्तंभ थे, किन्तु वर्तमान में केवल 20 स्तंभ ही शेष बचे हैं। सभी स्तंभ लगभग 14 फीट ऊँचे हैं। इन स्तंभों की अलंकरण, साज-सज्जा व शिल्प सौंदर्य अद्भुत है। घंटियों, मालाओं, साधुओं, विद्याधरों व मिथुनों की मूर्तियां भी इन पर उत्कीर्ण हैं। महामंडप के प्रवेश द्वार पर यक्ष दंपत्ति विभिन्न प्रेमातर मुद्राओं में उत्कीर्ण है। चौखट के अधोभाग में शासन देवी की बड़ी-बड़ी मूर्तियां है। द्वार के ऊपर प्रथम तीर्थंकर की गरुणवाहिनी अष्टभुजी चक्रेश्वरी देवी विराजमान है। दोनों ओर जैन तीर्थंकर मूर्तियां पद्मासन में उत्कीर्ण हैं। तीर्थंकर माता के 16 स्वप्नों का भी सुंदर अंकन यहां देखने को मिलता है। मंदिर जीर्ण-शीर्ण है। ये पहले आदिनाथ जिनालय था; जिसमें भव्य व मनोज्ञ भगवान आदिनाथ की प्रतिमा विराजमान थी। यहां दो शिलालेख मिले हैं। एक पर नेमिचन्द्र शब्द पढ़ा जा सका, जो 10 वीं सदी का है। दूसरे लेख में स्वस्ति श्री साधु पालना शब्द अंकित है। सन् 1876-77 में यहां खुदाई से 13 जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां प्राप्त हुई थीं। खजुराहो के शेष जैन मंदिर एक विशाल चहार दीवारी के अंदर बने हैं। इनमें से कुछ मंदिरों के निर्माण में प्राचीन मंदिरों के अवशेषों का प्रयोग किया गया है। प्रकाश के लिए झरोखे बने है। मंदिरों का विवरण निम्नानुसार है 2. शान्तिनाथ जिनालय- यह जिनालय एक पृथक चहार-दीवारी में स्थित है। इस परिसर में कुल 16 जिनालय स्थित हैं। जिनका निर्माण प्राचीन जिनालयों व मूर्तियों से हुआ प्रतीत होता है। यह जिनालय प्रवेश द्वार के ठीक सामने स्थित है। इस जिनालय में 12 फीट ऊँची भगवान शांन्तिनाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा में प्रतिमा विराजमान है। यह खजुराहो की प्रतिमाओं में सबसे बड़ी है। प्रतिमा के दोनों हाथ में पूर्ण विकसित पद्म है और मुखमंडल पर सौम्य है। इस प्रतिमा के दोनों ओर 3.5 फीट ऊँची पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमायें स्थित हैं। परिकर में अनेक और भी जिनबिम्बों की आकृतियां बनीं हैं। यह प्रतिमा अलंकृत प्रभामंडल से युक्त है। सं. 1085 के लेख से युक्त इस प्रतिमा के पास ही दीवारों में 11वीं सदी की भगवान पार्श्वनाथ, आदिनाथ व महावीर स्वामी की मूर्तियां भी बनीं हैं। मूर्ति के परिकर में बाहुबली भगवान की मूर्ति भी उत्कीर्ण है। इस जिनालय के प्रवेश द्वार पर गंगा-यमुना की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं व पास ही क्षेत्रपाल की मूर्ति भी है। यह मूर्ति नृत्य मुद्रा में है। भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा के सिर पर छत्र बने हैं व दोनों ओर हाथी पर कलश लिए इन्द्र भी उत्कीर्ण हैं। नीचे चंवरधारी इन्द्र भगवान की सेवा में खड़े हैं। श्रावकश्राविकाओं की मूर्तियां भी नीचे के भाग में उत्कीर्ण की गई हैं। ऊपर वर्णित भगवान पार्श्वनाथ की पद्मासन प्रतिमा के आसन से लेकर फणावली तक सर्प का मुंजलक मनोहारी है। भगवान आदिनाथ की प्रतिमा जटाजूटों से अलंकत मध्य-भारत के जैन तीर्थ- 35
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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