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अतिशय क्षेत्र खजुराहो वि. सं. 1056 के गंडदेव के एक शिलालेख में उल्लेख है कि “श्री खजूर वाटिका राजा धंगदेव राज्य।" इसका सीधा सा तात्पर्य है कि राजा धंगदेव के शासनकाल में यहां खजूरों का बाग था। शिलालेख व इतिहास ग्रंथों में इस नगर के खर्जूरवाटिका, खजूरपुर, खजुरा, खजुराहा आदि नामोल्लेख मिलते हैं। वर्तमान में इसी को हम खजुराहो के नाम से जानते हैं। अबूरिहोन नाम मुस्लिम इतिहासकार ने सन् 1031 में इसका उल्लेख जेजाहुति की राजधानी खर्जूरपुर के नाम से किया है। इनबतूता 1330 में यहां आया था, वह लिखता है-वहां एक मील लंबी झील है, जिसके चारों ओर मंदिर बने हुए हैं, उनमें मूर्तियां रखी हुईं हैं। उस समय यहां चंदेलों का शासन था। ___ खजुराहो वर्तमान में म. प्र. के छतरपुर जिले में स्थित है। यह अपने कलात्मक भव्य मंदिरों के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है। खजुराहो में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का हवाई अड्डा है। यहां रेलवे स्टेशन भी है। दिल्ली व बनारस से खुजराहो के मध्य सीधी रेल सेवा है। यहां पर अन्तर्राज्यीय बस स्टैंड भी है; जहां दिल्ली, राजस्थान, उ. प्र. आदि से बसें आती-जाती हैं।
खजुराहो झांसी-रीवा राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित बमीठा कस्बे से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह महोबा से 55 किलोमीटर, हरपालपुर से 100 किलोमीटर, छतरपुर से 45 किलोमीटर, सतना से 120 किलोमीटर व पन्ना से 43 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। झांसी से खजुराहो की दूरी 180 किलोमीटर है। सभी बड़े शहरों से खजुराहो तक सीधी बस सेवा उपलब्ध है। ___ यहां जैन मंदिर समूह में यात्रियों को रूकने के लिए धर्मशाला आदि की सुविधा भी है। इसके अलावा पर्यटकों को रूकने हेतु यहां पर्यटक बंगला, विश्राम भवन तथा अनेक बड़े होटल भी है। खजुराहो के जैन मंदिर चंदेल राजाओं के शासन काल की समुन्नत शिल्पकला के उत्कृष्ट नमूने हैं। ये मंदिर ई. सं. 900 से लेकर 1213 तक के काल के हैं। यहां 32 दिगंबर जैन मंदिर है। जैन मंदिर पूर्वी और दक्षिणी समूह स्थित हैं। इन जैन मंदिरों का विवरण इस प्रकार है
1. घंटई मंदिर : इस जिनालय के खंबों पर घंटा और उनकी जंजीरों के अलंकरण उत्कीर्ण होने के कारण व संग्रहालय में स्थित कुछ मूर्तियों के अभिलेखों में घंटई शब्द उत्कीर्ण होने के कारण इसे घंटई मंदिर कहा जाता है। यह जिनालय 10वीं सदी का है तथा 43 x 22 फीट में बना है। जैन मंदिर समूह से यह एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसका द्वार पूर्व की ओर है। इसमें अर्धमंडप, मंडप, अन्तराल, गर्भगृह व प्रदक्षिणा पथ था; किन्तु इस मंदिर की बाहरी दीवाल गिर जाने के कारण अब अर्धमंडप व महामंडप ही शेष बचा है।
34 - मम्य-भारत के जैन तीर्थ