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इन्द्र भी उत्कीर्ण हैं । प्रतिमा के ऊपर पार्श्व भागों पर 2 पद्मासन व 2 खड्गासन मुद्रा में छोटी-छोटी प्रतिमायें उत्कीर्ण हैं। सिर के ऊपर भी एक जिनबिम्ब उत्कीर्ण है ।
2. परिसर में स्थित धर्मशाला के प्रथम तल पर वेदिका पर मध्य में भगवान कुंथुनाथ की 5 फीट अवगाहना की कायोत्सर्ग मुद्रा में श्याम वर्ण की प्रतिमा प्रतिष्ठित है। जबकि पार्श्व भागों पर क्रमशः भगवान आदिनाथ व शान्तिनाथ की प्रतिमायें विराजमान हैं। ये प्रतिमायें लगभग 2.5 फीट अवगाहना की पद्मासन मुद्रा में आसीन हैं ।
3. नीचे एक हॉल में भगवान भरत व बाहुबली की प्रतिमाओं के साथ मध्य में भगवान आदिनाथ की प्रतिमायें विराजमान हैं। ये प्रतिमायें 6 फीट से 8 फीट अवगाहना की संगमरमर निर्मित हैं। इसी हॉल में कमलासन पर भगवान आदिनाथ की भव्य व मनोज्ञ प्रतिमा भी विराजमान हैं ।
4. भोंयरे के ऊपर तल पर एक नये जिनालय का निर्माण किया गया है। इस वेदिका पर 7 जिनबिम्ब विराजमान है। मध्य में कायोत्सर्ग मुद्रा में 6 फीट अवगाहना की भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा विराजमान है। बायें पार्श्व में ऊपर भगवान चन्द्रप्रभु की लगभग 2.5 फीट अवगाहना की श्वेत संगमरमर से निर्मित भव्य प्रतिमा आसीन है। उसके नीचे लगभग 1.5 फीट अवगाहना की भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा विराजमान है व सबसे नीचे 100 फणी लगभग 1 फीट अवगाहना की भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित है। ये सभी प्रतिमायें नवीन हैं । दायीं ओर के पार्श्व भाग में भी उपरोक्त विधि से तीन प्रतिमाओं को प्रतिष्ठित किया गया है । ऊपर भगवान चन्द्रप्रभु की 2.5 फीट अवगाहना की उसके नीचे पार्श्वनाथ भगवान की सात फणी प्रतिमा देशी पाषाण से निर्मित लगभग 1.5 फीट अवगाहना की व सबसे नीचे लगभग 1 फीट अवगाहना की भगवान चन्द्रप्रभु की प्रतिमा विराजमान है। भगवान पार्श्वनाथ की देशी पाषाण से निर्मित प्रतिमा काफी प्राचीन है। इसके उपरिम भाग के पार्श्व में 4 तीर्थंकर प्रतिमायें और उत्कीर्ण हैं । पार्श्व भागों में ऊपर आकाशगामी देव व नीचे चंवरधारी इन्द्र बने हुए हैं I
मध्य-भारत के जैन तीर्थ = 31