SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिनालय में प्रवेश करते हैं। इस जिलय में 15-20 सीढ़ियां उतरकर नीचे जाना पड़ता है। यह भोंयरा एक ही पत्थर से निर्मित है । यहीं अतिशयकारी, प्राचीन भव्य व मनोकामना पूर्ण करने वाली भगवान अजितनाथ की प्रतिमा मध्य में विराजमान है । यही यहां के मूलनायक हैं। भगवान की यह पद्मासन प्रतिमा लगभग 2.5 फीट ऊँची काले पाषाण से निर्मित है, अतिमनोज्ञ है व दर्शन करने पर दर्शनार्थियों को यहां परम शान्ति का अनुभव होता है । मूर्ति की भव्यता देखते ही बनती है। इस मूर्ति के पामूल की प्रशस्ति निम्न प्रकार है । “सं. 1199 चेत्रसुदी 13 सामे उनाम वास्तवल्यये साधु श्री गोपाल तस्य पुत्र साधु शुभचंद, साधु देवचंद, एते प्रणमन्ति श्रेयसे नित्यम् । ।" इस मूर्ति के दोनों ओर भगवान आदिनाथ एवं भगवान संभवनाथ की लगभग 2.5 फीट ऊँचाई वाली खड्गासन प्रतिमायें विराजमान हैं। ये मूर्तियां भी श्याम वर्ण की हैं। इन दोनों का प्रतिष्ठाकाल 1209 है । इसी वेदिका पर भगवान संभवनाथ व भगवान नेमिनाथ की पद्मासन प्रतिमायें भी आसीन हैं। इन प्रतिमाओं के पामूल में भी प्रतिष्ठाकाल सं. 1209 अंकित है। एक अन्य प्रतिमा जो भगवान ऋषभदेव की है, भी इस वेदिका पर आसीन है, किन्तु इस प्रतिमा के पामूल का लेख अपठनीय है। वेदिका पर कुछ अन्य प्रतिमायें भी विराजमान हैं। 7. इस वेदिका व भोंयरे के दर्शन कर आगे बढ़ने पर एक अतिप्राचीन जिनालय और स्थित है। यह मठ के आकार का है। इसके मध्य में मढ़ियानुमा जिनालय में जो चार खंबों पर टिकी हैं, अतिप्राचीन प्रतिमायें विराजमान हैं। ये सभी जिन - प्रतिमायें बलुआ पत्थर से निर्मित हैं । कुछ प्रतिमाओं पर प्रशस्ति भी नहीं है, जो इनकी प्राचीनता की द्योतक है। निर्माण कार्य व निर्माण सामग्री को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि यह जिनालय चौथी, पांचवी सदी का होना चाहिए । यह क्षेत्र निश्चयतः अतिप्राचीन है । ग्राम के बाहर किन्तु ग्राम में प्रवेश करते ही एक विशाल प्रांगण में कुछ वर्ष पूर्व एक नवीन जिनालय का निर्माण किया गया है। नवनिर्मित वेदिका पर • मूलनायक के रूप में भगवान अजितनाथ की विशालकाय भव्य प्रतिमा विराजमान है । यह पद्मासन श्यामवर्ण मूर्ति लगभग 10 फीट ऊँची है। ग्राम के मंदिर की तरह यहां भी प्रतिमा के दायीं व बायीं ओर भगवान ऋषभदेव जी व संभवनाथ की खड्गासन प्रतिमायें प्रतिष्ठापित हैं। इस जिनालय से 40-50 फीट दूरी पर विशालकाय क्षेत्रपाल जी विराजमान हैं, ज़ो क्षेत्र के रक्षक देव हैं। 1 विशेष - 1. यहां सन् 1967 से श्री अजितनाथ दिगंबर जैन विद्यालय संचालित है । 2. 1968 में यहां एक संग्रहालय की स्थापना की गई जिसमें आसपास के गांवों से प्राप्त की गई खंडित प्रतिमायें व अन्य कला कृतियां संग्रहित हैं। 3. यात्रियों को ठहरने के लिए यहां धर्मशाला भी है । मध्य-भारत के जैन तीर्थ ■ 29
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy