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________________ बंधा अतिशय क्षेत्र म. प्र. के टीकमगढ़ जिलान्तर्गत बुंदेलखंड की पावन धरा पर अतिशय क्षेत्र बंधा जी अपनी एक अलग पहचान व अतिशय रखता है। यह अतिप्राचीन, भव्य व रमणीक स्थल टीकमगढ़-झांसी मार्ग पर स्थित ग्राम बम्हौरी बराना से मात्र 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह पहुँच मार्ग डॉवरयुक्त पक्का है। यह अतिशय क्षेत्र ललितपुर से 92 किलोमीटर, टीकमगढ़ से 40 किलोमीटर व झांसी से 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह क्षेत्र समतल मैदानी भाग पर स्थित शान्त वातावरण में एक छोटे से ग्राम में स्थित है। इस क्षेत्र के निकट ही एक टीला स्थित था, जहां से खुदाई करने पर प्राचीन जैन मूर्तियां निकली थीं। यह जिनालय चंदेल काल से भी पुराना प्रतीत होता है। अतिशय 1. मंदिर से लगभग 100 मी. की दूरी पर स्थित एक बावड़ी के पास स्थित खेत से खेत मालिक को खेत जोतते समय एक दिगंबर जैन प्रतिमा मिली थी। इसी खेत में एक पाषाण का टुकड़ा पड़ा है। जब भी खेत मालिक इस प्रस्तर खंड को अन्यत्र रखता है उसके परिवार में कोई न कोई बीमार हो जाता है। जनता का ऐसा विश्वास है कि प्रस्तर खंड के आसपास और जिन मूर्तियां होनी चाहिए। 2. प्राचीन किंवदन्ती के अनुसार यहां मुगलकाज में मुगल शासक मूर्ति तोड़ने के इरादे से आया। वह जब यहां मूर्ति तोड़ने का प्रयास करने लगे, तो मूर्ति-भंजकों के हाथ बंध गये अर्थात् उनके हाथ अचल हो गए। यह आश्चर्यजनक घटना भोयरा स्थित जिनालय में घटी थी। इसीलिए तब से इस स्थल का नाम बंधा जी पड़ गया। बाद में मूर्तिभंजक प्रतिमा को साष्टांग नमस्कार कर वापिस चले गये। 3. सं. 1890 में एक मूर्तिकार मूर्ति बेचने हेतु समीप के ग्राम बम्हौरी बराना से गुजर रहा था। वह मूर्तियों को एक बैलगाड़ी में रखे था। जब उसकी गाड़ी पीपल के पेड़ के पास से गुजरी, तो वह अचल हो गई। जब यह समाचार यहां के सिंघई जी को मालूम चली, तो उन्होंने इस शर्त के साथ मूर्ति लेनी चाही, कि इसे बंधा जी क्षेत्र में प्रतिष्ठा कर स्थापित किया जाये। पुनः जब बैलगाड़ी को चलाया गया तो बैलगाड़ी चलने लगी व वह बंधा जी तक पहुंच गई। इस घटना से प्रसन्न हो चारों ओर भगवान अजितनाथ व 24 तीर्थंकरों के जयकारे गूंजने लगे। यह प्रतिमा तब से यहां विराजमान है। 4. भोयरे के जिनालय में एक नाग निवास करता है, जो प्रायः सद्भावना शून्य लोगों को दिखाई नहीं देता है। किन्तु सद्भावना से ओतप्रोत को यह अक्सर आज भी दिखाई देता है, ऐसा क्षेत्र के पास के निवासियों ने मुझे बताया। 5. क्षेत्र पर रात की नीरवता में आज भी देवकृत नृत्यों व उनके द्वारा किए जा रहे गायन-वादन को सुना जा सकता है। ऐसा क्षेत्र के पास के निवासियों से मुझे ज्ञात हुआ। 6. बंधा क्षेत्र के अतिशय को सुनकर झांसी की एक सेठानी पुत्रोत्पति की कामना लेकर यहां आई थी। सेठानी को एक वर्ष पश्चात् पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। अपनी मध्य-भारत के जैन तीर्थ-श
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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