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आर्यिकाओं और उनकी शिष्याओं, प्रतिशिष्याओं की परंपरा का वर्णन 1210 से 1720 (विक्रम सं.) तक पाया जाता है। ___ इस प्राचीन सिद्धक्षेत्र पर कालान्तर में अनेक अतिशयकारी घटनायें घटित हुईं। यहां के अतिशयों में दो अतिशयों का उल्लेख मिलता है। प्रथम तो यह कि प्रसिद्ध व्यापारी पाणाशाह का रांगा इसी स्थान पर चांदी में परिवर्तित हो गया था। यह स्थान आज भी चांदी टाडे की टौरियों के नाम से प्रसिद्ध है। दूसरा यह कि अनेक मासोपवासी एक मुनिराज का यक्षिणीकृत उपसर्ग दूर होकर यहीं पर उनका निरन्तराय आहार हुआ था तभी से इस क्षेत्र का नाम अहार जी प्रसिद्ध हुआ।
... क्षेत्र के चारों ओर स्थित विशाल परकोटे में 9 जिनालय स्थित हैं। 1. भगवान शान्तिनाथ जिनालय :
__ अतिमनोज्ञ, असीम शान्तिप्रदायक, कलापूर्ण, अतिशययुक्त 21 फीट उत्तंग भगवान शान्तिनाथजी की पाषाण प्रतिमा अतिप्राचीन मूल शिखरबंद मंदिर में खड़गासन मुद्रा में विराजमान हैं। गर्भगृह में मूलनायक भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा के दायें व बायें 13-13 फीट ऊँची भगवान कुंथुनाथ व अरहनाथ की प्रतिमायें विराजमान हैं। इनमें से एक मूर्ति नव स्थापित प्रतीत होती है। भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा संवत् 1237 में प्रतिष्ठित की गई थी।
इस प्राचीन प्रतिमा के पादमूल में 9 x 4 इंच का एक मूर्तिलेख खुदा है, जिसका आशय है-ग्रहपतिवंश में श्रेष्ठी देवपाल हुए, जिन्होंने बानपुर में सहस्रकूट चैत्यालय बनवाया। उनके पुत्र रत्नपाल व रत्नपाल के पुत्र रल्हण हुए। इनके पुत्र गल्हण ने नंदपुर व मदनेश सागरपुर में शान्तिनाथ जिनालय बनवाये। गल्हण के दो पुत्र थे-जाहद व उदयचन्द्र। इन दोनों भाइयों ने सं. 1237 की अगहन सुदी 3 शुक्रवार को यह शान्तिनाथ भगवान की मूर्ति प्रतिष्ठित करवाई।
गर्भगृह के बाहर शिखरबंद मंदिर परिसर में भूत, भविष्य व वर्तमान की तीन चौबीसी स्थित है। यहीं विदेह क्षेत्र स्थित बीस तीर्थंकरों की जिन-प्रतिमायें भी स्थित हैं। इस तरह कुल (24+24+24+20) = 92 जिन-प्रतिमायें विराजमान हैं। ये सभी प्रतिमायें संगमरमर की नवनिर्मित हैं। इसके अलावा लगभग 3 से 4 फीट ऊँची भगवान शान्तिनाथ, चन्द्रप्रभु, नेमिनाथ व महावीर स्वामी की जिन-प्रतिमायें भी शिखरबंद मंदिर के मुख्य द्वार के दायीं व वायीं ओर विराजमान हैं। ___ इसी प्रांगण में एक भोयरे का निर्माण भी किया गया है, जिसमें सर्वाधिक जिन-प्रतिमायें विराजमान हैं। 2. वर्धमान जिनालय :
यह जिनालय संग्रहालय के ऊपर बना है। जिसमें भगवान महावीर स्वामी मूलनायक के रूप में विराजमान हैं। इसमें दो अन्य जिन देव भी स्थापित हैं। मेरू मंदिर :
यह मंदिर गोलाकार है व संग्रहालय के आगे बना है। तीन प्रदक्षिणा देकर श्री जी के दर्शन होते हैं।
मध्य-भारत के जैन तीर्थ - 25