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________________ अहार सिद्ध क्षेत्र कामदेव श्री मदन कुमार, विस्कंबल केवलि भवपार । गिरिवर क्षेत्र अहार महान, वंदन करूं और जुग पान ।। यह क्षेत्र म. प्र. के टीकमगढ़ जिलान्तर्गत जिला मुख्यालय से सड़क मार्ग से लगभग 22 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। टीकमगढ़-छतरपुर वाया बल्देवगढ़ मार्ग पर अहार तिराहे की पुलिया से 5 किलोमीटर दूर यह क्षेत्र अवस्थित है । पुलिया से मुड़ने पर बायीं ओर लगभग 4 किलोमीटर लंबा विशाल तालाब यात्रियों का मन मोह लेता है। संपूर्ण पहुँच मार्ग पक्का डाबर युक्त है । प्रतिदिन यहां तक यात्री बसें आती जाती हैं। यहां प्रकाश, पानी व ठहरने की समुचित व्यवस्थायें हैं। यह अतिप्राचीन तीर्थ क्षेत्र है जो समतल भूमि पर अवस्थित है । इतिहास : भगवान मल्लिनाथ जी के मोक्षगमन के पश्चात सत्रहवें कामदेव मदनकुमार ( नलराज ) का जन्म बांगड़ प्रान्त के निशिद्धपुर नगर में राजा नीसधर के यहां रानी विरला देवी की कुक्षि से हुआ था । आपका विवाह कुण्डलपुर नरेश भीमसेन तथा उनकी धर्मपत्नी पुष्पदत्ता की सुपुत्री दमयन्ती के साथ हुआ था। राजा नल ( मदनकुमार ) कुछ दिन राजपाट भोगकर भोगों से विरक्त हो जैनेश्वरी दीक्षा लेकर अहार जी से मोक्ष पधारे थे। (नलराज चरित्र) बाद में भगवान महावीर स्वामी के काल में 10 अन्तःकृत केवलियों में से 8वें केवली विस्कंबल स्वामी भी इसी क्षेत्र से मोक्ष पधारे थे। यह निर्वाण क्षेत्र वर्तमान में अहार जी क्षेत्र के समीप "पंचपहाड़ी" के नाम से जाना जाता है। इसीलिए अहार जी को सिद्धक्षेत्र कहा जाता है । यहीं तलहटी में मदनतला नाम का छोटा सरोवर भी है तथा मदनवेर नाम की प्राचीन वावड़ी भी यहीं है । क्षेत्र के समीप स्थित सिद्धों की टौरिया, सिद्धों की गुफा, सिद्धों की मड़िया भाला की टौरिया अन्य विचरणीय स्थल हैं । पर्वत पर कुछ मंदिरों के भग्नावशेष स्थित हैं । मूर्तियों के आसन, वेदिकाओं पर खुदे लेख, सैंकड़ों खंडित मूर्तियां व उनके भग्नावशेष, मंदिरों के ध्वंशावशेष यहां की प्राचीन समृद्ध संस्कृति के जीते जागते प्रमाण हैं । स्थानीय संग्रहालय स्थित मूर्ति नं. 811 की प्रशस्ति में निम्न लेख हैं । "सं. 588 माघ सुदी 13 गुरौ पुष्पं नक्षत्रे गोलापूर्वान्यवे साहू रामल सुत साहगणपति साहू भमदेव, हींगरमल सुतवंशी मदन सागर तिलकं नित्यं प्रणमति” । इस नगर के प्राचीन नाम मदनसागरतिलक, मदनसागरपुर, मदनेशपुर, वसुहाटिकापुरी, नंदनपुर, अहार आदि रहे हैं, ऐसा मूर्तियों के नीचे लिखी प्रशस्तियों से विदित होता है। एक ताम्र पत्र में भी मदन सरोवर व मदनवेर का उल्लेख है । यहां की मूर्ति प्रशस्तिओं में भट्टारकों एवं उनके शिष्य, प्रतिशिष्यों तथा 24■ मध्य-भारत के जैन तीर्थ
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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