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क्रमांक 20 तक के जिनबिम्बों के दर्शन करते हैं। ये सभी जिनबिम्ब वि.सं. 1870 से 1900 के बीच प्रतिष्ठित हैं । इनमें 15, 16 व 17वें जिनालय में भगवान ऋषभनाथ, 18वें में भगवान पार्श्वनाथ, 19वें में भगवान संभवनाथ व 20वें जिनालय में भगवान चन्द्रप्रभु की पदमासन प्रतिमाएं विराजमान हैं । इस तरह परिसर के बायीं ओर स्थित 20 जिनालयों में स्थित जिन - प्रतिमाओं के दर्शन पूर्ण हो जाते हैं ।
यहां से हम परिसर के दायीं ओर स्थित जिनालयों की वंदना को जाते हैं । दायीं ओर के जिनालयों की वंदना को जाते ही हमें पुनः एक लघु परिसर में प्रवेश करना होता है । इसे मूल क्षेत्र परिसर अथवा प्राचीन समुच्चय के नाम से जाना जाता है। इस परिसर में आठ जिनालय स्थित हैं, जो अतिप्राचीन हैं ।
जिनालय क्रमांक 21 में वि.सं. 1687 में स्थापित भगवान ऋषभनाथ की लगभग 5 फीट ऊँची खड़गासन प्रतिमा विराजमान है । यह प्रतिमा जिनालय क्रमांक 13 में स्थापित प्रतिमा के सदृश्य ही है, व पाषाण निर्मित है । प्रतिमा के पार्श्व भागों में चमरधारी इन्द्र स्थित हैं । इसी जिनालय में एक और कृष्ण पाधाण की लगभग 1.25 फीट ऊँची भगवान सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा भी विराजमान है ।
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22. इस जिनालय में वि.सं. 1716 में स्थापित भगवान नेमिनाथ की प्राचीन पदमासन मूर्ति विराजमान है ।
23. जिनालय क्रमांक 23 एक प्राचीन भोंयरा है । इस तरह के भोंयरे पावागिरि, बंधाजी, करगुंआ जी आदि तीर्थ क्षेत्रों में भी बने हैं, जो लगभग एक हो समय में निर्मित हैं । इस भोंयरानुमा जिनालय में काले पाषाण में निर्मित भगवान आदिनाथ, भगवान चन्द्रप्रभु व भगवान केवली ( प्रतीक चिन्ह रहित ) के जिनबिम्ब पदमासन मुद्रा में विराजमान हैं । ये मूर्तियां वि. सं. 1202 या इससे पूर्व की हैं। इसी जिनालय में पीछे की दीवाल में भगवान महावीर स्वामी की छोटी खड़गासन प्रतिमा भी है ।
24. जिनालय क्रमांक 24 में भगवान नेमिनाथजी की व 24 (ख) में प्राचीन खड़गासन जिन-प्रतिमा विराजमान हैं । यह प्रतिमा भगवान महावीर स्वामी की है। प्रतिमा के सिर के ऊपर तीन छत्र बने हैं। दोनों ओर ऊपर गंधर्व देव वाद्य यंत्र बजा रहे हैं । कुछ नीचे दोनों ओर हाथी पर अभिषेक कलश लिये सौधर्म व ईशान इन्द्र बैठे हैं । चरणों के दोनों ओर नृत्य मुद्रा में चांवर लिए इन्द्र खड़े हैं । अधोभाग में तीन सिंह बने हैं व भक्त श्राविकाएं हाथ जोड़े बैठी हैं
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25. पार्श्वनाथ जिनालय वि. सं. 1875 ।
26. प्राचीन सभामंडप में भगवान शान्तिनाथ, कुंथुनाथ व अरहनाथ तीर्थंकर भगवंतों की अतिप्राचीन खड़गासन प्रतिमायें विराजमान हैं। जो
20 ■ मध्य-भारत के जैन तीर्थ