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________________ वृष्टि कर रहे हैं । चरणों के दोनों ओर चमरेन्द्र खड़े हैं। इनके नीचे चतुर्भुज गोमेद यक्ष व अष्टभुजी चक्रेश्वरी यक्षी स्थित हैं। बिल्कुल अधोभाग में दोनों ओर भक्तगण भी उत्कीर्ण हैं । 2. सं. 1883 में प्रतिष्ठित इस जिनालय में भगवान सुपार्श्वनाथ की पदमासन मूर्ति विराजमान है। इस मूर्ति की अवगाहना 1.5 फीट है। इस बीच एक-दो जिनालय और स्थित हैं; जिसमें अधिकांश अष्ट धातु की व प्राचीन मूर्तियां विराजमान हैं। 3. चन्द्रप्रभु जिनालय में सं. 1892 में प्रतिष्ठित भगवान चन्द्रप्रभु की प्रतिमा विराजमान है । यह मूर्ति पदमासन में स्थित है। प्रतिमा की अवगाहना दो फीट है। 4. श्री विमलनाथ जिनालय (निर्माण काल ) सं. 1882 । 5. श्री पार्श्वनाथ जिनालय (निर्माण काल ) सं. 1904 । 6. श्री पार्श्वनाथ जिनालय (निर्माण काल ) सं. 1890 । 7. श्री चन्द्रप्रभु जिनालय (निर्माण काल ) सं. 1552 | जिनालय क्रमांक 6 व 7 की रचना मेरू सदृश्य है, जिनमें दर्शनार्थियों को गोलाकार आकृति में सीढ़ियां चढ़कर ऊपर जाना होता है। 8. भगवान पार्श्वनाथ जिनालय सं. 1903 में निर्मित हैं। इस जिनालय में 3 फीट ऊँची पदमासन प्रतिमा विराजमान है । 9. भगवान चन्द्रप्रभु जिनालय सं. 1942 में निर्मित है व ऊपरी मंजिल पर स्थित है । यहां से लगभग 40-50 कदम की दूरी पर जिनालय क्रमांक 10 से लेकर जिनालय क्र. 14 स्थित हैं । जिनालय क्रमांक 10 में भगवान ऋषभनाथ वि. सं. 1942 क्रमांक 11 में भगवान नेमिनाथ वि.सं. 1939, जिनालय क्रमांक 12 में भगवान विमलनाथ वि.सं. 1906 की पदमासन प्रतिमायें विराजमान हैं । बायीं ओर का आखिरी जिनालय क्रमांक 13. है, जहां प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ की लगभग 5 फीट ऊँची प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा वि. सं. 1718 में प्रतिष्ठित है । यहां से हम फिर वापिस आकर मंदिर क्रमांक 14 में प्रवेश करते हैं । यहां मनोहारी व अतिशयकारी भगवान पार्श्वनाथ की श्वेत संगमरमर से निर्मित लगभग 5 फीट ऊँची भव्य प्रतिमा विराजमान है । विभिन्न कालों में देखने पर यह प्रतिमा विभिन्न रूपों में देखी जा सकती है । सामान्यतः प्रातःकाल की वेला में यह बालरूप में, दोपहर की वेला में यह युवा रूप में व सायं की वेला में यह प्रौढ़ रूप में दिखाई देती है। यहां दर्शनार्थियों की मनोकामनायें पूर्ण होती देखी गई हैं । प्रतिमा के दोनों पार्श्व भागों में चमरेन्द्र सेवा कर रहे हैं । तत्पश्चात हम आगे बढ़ते हुए जिनालय क्रमांक 15 से लेकर जिनालय मध्य-भारत के जैन तीर्थ = 19
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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