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उतरकर भगवान से प्रार्थना करने लगी। फिर क्या था कुएं में पानी का स्त्रोत फूट निकला और वृद्धा की जय-जयकार होने लगी। उसकी लाज बच गई। तभी से इस कुएं को 'पतराखन' अर्थात् लाज रखने वाला कुआं कहते हैं। यह ईश्वरीय चमत्कार था। _____3. यहां प्राचीन मूल परिसर में स्थित जिन-प्रतिमाओं के दर्शन करने से लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
4. प्राचीन परिसर स्थित सभामंडप के मंदिर में भगवान शान्तिनाथ, कुंथुनाथ व अरहनाथ की अतिप्राचीन प्रतिमायें विराजमान हैं जो खड़गासन मुद्रा में हैं। इकतरा बुखार (मलेरिया) आने पर इतवार व बुधवार के दिन जो भी श्रद्धालु इन प्रतिमाओं को तीन बार साष्टांग नमस्कार करता है, उसकी पीड़ा दूर होती है।
5. यहां स्थित मंदिर नं. 35 में आज से लगभग 50 वर्ष पूर्व एक गर्भिणी शेरनी एक माह तक रुकी रही, किन्तु उसने कभी भी किसी भी श्रद्धालु को कोई हानि नहीं पहुंचाई। यह टीकमगढ़ व आसपास के गांव वालों की आंखों देखी घटना है।
6. प्राचीन भोयरे में एक नागराज निवास करते थे, जो प्रायः भोयरे के द्वार पर बैठे रहते थे। जब भी कोई दर्शनार्थी आता, वह एक तरफ हो जाता था। यह भी स्थानीय निवासियों की 20वीं शताब्दी के दिनों में आंखों देखी घटना है।
7. मंदिर क्रमांक 14 में स्थित अतिशयकारी भगवान पार्श्वनाथ की मनोहारी खड़गासन प्रतिमा विराजमान है। प्रातः, दोपहर, सांय इसे अलग-अलग रूपों में देखा जा सकता है। यहां आज लोग अपनी मन्नतें मांगते हैं। क्षेत्र स्थित जिनालय :
पपौरा जी में चार मंदिरों के निर्माणकाल का सही-सही आंकलन नहीं किया जा सकता। यहां ईसा की 12वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक जिनालयों का निर्माण कार्य निरन्तर चलता रहा। यहां के 34 जिनालय बीसवीं सदी में बने हैं, जबकि 61 जिनालय 19वीं सदी में निर्मित हुए थे। एक जिनालय अठारहवीं सदी, 4 जिनालय 17वीं सदी, 3 जिनालय 15वीं सदी तथा एक-एक जिनालय क्रमशः 13वीं व 12वीं सदी के हैं। खण्ड 'अ' बायीं ओर कुल 20 जिनालय स्थित हैं।
1. इस जिन मंदिर में पाषाण निर्मित अत्यन्त मनोहारी लगभग 10 फीट ऊँची प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ (ऋषभनाथ) की खड़गासन प्रतिमा विराजमान है। दायें-बायें और भी मूर्तियां विराजमान हैं। मूलनायक की प्रतिमा सं. 1872 की है। मूलनायक के सिर पर छत्र और पीछे आभामंडल निर्मित है। प्रतिमा के ऊपरी भाग में दोनों ओर गगनगामी विद्याधर पुष्प 18 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ