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पपौरा अतिशय क्षेत्र
स्थिति एवं परिचय :
श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री पपौरा जी टीकमगढ़- सागर मार्ग पर मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिला मुख्यालय से मात्र 5 किमी. की दूरी पर स्थित है । यह तीर्थ क्षेत्र विशाल परकोटे के भीतर समतल जमीन पर स्थित है । दूर-दूर से यहां स्थित जिन-मंदिरों के शिखरों को देखा जा सकता है। यहां यात्रियों को ठहरने के लिए लगभग सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। यहां अनेक धर्मशालाएं, विद्यालय, सरस्वती सदन, आयुर्वेदिक औषधालय, भोजनालय, गोशाला आदि भी क्षेत्रान्तर्गत स्थित हैं। यहां के मंदिर विविध शैलियों के बने हुए हैं। वर्तमान में यहां 108 जिनालय हैं। यहां रथाकार, मुकलित कमलाकार, वरण्डा आकार, अट्टालिकाकार, मठ व मेरू आकार, गुफा मंदिर आदि आकारों के जिनालय हैं । तीर्थ क्षेत्र पर दो चौबीसी एवं मानस्तंभ की रचनाएं भी दर्शनीय हैं। मूर्तियों की भव्यता देखते ही बनती है। यात्री जहां क्षेत्र के परकोटे में स्थित मुख्य प्रवेश द्वार से क्षेत्र के अंदर प्रवेश करते हैं, उसके ऊपर स्थित रथाकार मंदिर दर्शकों को आकर्षित किये बिना नहीं रहता ।
यह तीर्थ क्षेत्र अतिप्राचीन है । वास्तव में यह स्थल रामायण कालीन प्रतीत होता है वाल्मीकि रामायण में पंपापुरी के सरोवर पर श्री राम का हनुमान जी के साथ भेंट का उल्लेख कुछ इस प्रकार है- “ पश्य लक्ष्मण पंपायां बकः परम धार्मिकः " । इस क्षेत्र के समीप स्थित वन का नाम रमन्ना है जो रामरण्य का अपभ्रंश प्रतीत होता है । यही पंपापुर आज का पपौरा जी है। यहां भोंयरे में स्थित एक काले पाषाण की जिन-प्रतिमा पर नीचे कोई प्रशस्ति नहीं है, पर उस मूर्ति की कला को देखकर यह मूर्ति चतुर्थ काल की प्रतीत होती है ।
क्षेत्र के अतिशय :
1. प्राचीन समुच्चय के बाहर जाने पर एक प्राचीन वावड़ी मिलती है किवदन्ती है कि इस वावड़ी से यात्रियों को भोजन बनाने के लिए इच्छानुसार बर्तन मिलते थे । यात्री भोजन बनाने के बाद बर्तनों को वापिस इस वावड़ी में डाल देते थे । किन्तु एक बार एक यात्री अपने साथ इन बर्तनों को ले गया, तभी से यह अतिशय समाप्त हो गया ।
2. जिन मंदिरों के क्रम में प्रथम जिन मंदिर की नींव वि.सं. 1872 में एक वृद्धा अपनी जमा पूंजी से रख रही थी। इस अवसर पर उस वृद्धा ने एक प्रीतिभोज भी आयोजित किया था । प्रीतिभोज के दौरान अचानक पास में स्थित कुये में पानी समाप्त हो गया, जिससे कार्यक्रम में अफरा-तफरी मच गई। तभी वह वृद्धा एक चौकी पर बैठकर रस्सी के सहारे उस कुएं में
मध्य-भारत के जैन, तीर्थ ■ 17