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________________ रत्नपुरी जैनधर्म के 15वें तीर्थंकर भगवान श्री धर्मनाथ का जन्मस्थान फैजाबादलखनऊ रोड पर फैजाबाद से 17 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम सोहावल के पास राई थाना कोतवाली से मात्र 1.5 किलोमीटर दूरी पर स्थित है । रत्नपुरी नामक यह स्थल ग्राम में स्थित मुस्लिम आबादी से घिरा है । यहाँ ग्राम में प्रवेश करने पर सबसे पहले श्वेताम्बर जिनालय दिखाई पड़ता है। इस जिनालय के पश्चात् एक संकीर्ण गली से हम प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण स्थल पर पहुंचते हैं। यह स्थल एक टीला है जिसकी खुदाई करने पर भगवान धर्मनाथ की जन्मभूमि से संबंधित पुरातत्व साक्ष्य मिल सकते हैं। इसी टीले से कलकल नाद करती सुरम्य सरयू नदी को प्रवाहित होते देख कर मन को असीम शान्ति मिलती है व अति आनंद की अनुभूति होती है। भगवान धर्मनाथ जिनालय- इसी टीले के पास भगवान श्री धर्मनाथ की जन्मभूमि पर एक विशाल परिसर में भगवान धर्मनाथ का भव्य जिनालय स्थित है। इस जिनालय में अतिशयकारी, भव्य व मनोहारी भगवान धर्मनाथ की वज्र चिह्न युक्त तीन फीट से अधिक ऊँची प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में विराजमान हैं; जिनके दर्शन करते ही हृदय कमल खिल जाता है व दर्शनार्थी का यहाँ से हटने का मन नहीं करता। जिनालय में स्थित इस एकमात्र वेदिका पर भगवान धर्मनाथ की प्रतिमा के अतिरिक्त लगभग एक फीट ऊँची भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा भी विराजमान है। इसके अलावा वेदिका पर भगवान धर्मनाथ, शान्तिनाथ की अन्य प्रतिमायें भी विराजमान हैं वेदिका पर एक अन्य प्रतिमा विराजमान हैं; जिस पर प्रतीक चिह्न अंकित नहीं है । यहीं वेदिका के पास भगवान धर्मनाथ के अष्टधातु निर्मित चरण भी स्थापित हैं । यही भगवान धर्मनाथ की जन्मभूमि मानी जाती है । वेदिका के समीप ही माता पद्मावती देवी की दो मूर्तियां भी विराजमान है। । 1 चरण छत्री - यह छत्री जिनालय से लगभग 500 कदम की दूरी पर पवित्र सरयू नदी के किनारे स्थित है। यह छत्री ऊँचाई पर एक छोटे से टीले पर अवस्थित है । इस छत्री में भगवान धर्मनाथ के चरण स्थापित हैं । यहीं एक शिलालेख में भगवान के गर्भकल्याण का वर्णन है । चरण - चिह्न एक से 1.5 मीटर ऊँचाई पर स्थित है। इस चरण वेदिका के बाईं ओर भी एक शिलालेख वालुका पत्थर की चट्टान पर खुदा हुआ है। जिसमें रत्नपुरी नगरी का नाम भगवान धर्मनाथ के साथ खुदा है । यह शिलालेख एक पुराने शिलालेख के स्थान पर (जो कालवश नष्ट हो गया था ।) सं. 1839 में पुनः लगाया गया था । अयोध्या आने वाले दर्शनार्थिओं को भगवान धर्मनाथ की जन्मभूमि के दर्शन कर अवश्य पुण्य लाभ लेना चाहिये व तीर्थ के विकास हेतु यथोचित मध्य-भारत के जैन तीर्थ ■ 185
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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