________________
7. आगे हमें बायीं ओर स्थित दूसरी वेदिका पर भगवंतों के दर्शन होते हैं । यहाँ भी मध्य में भगवान विमलनाथ की पद्मासन मुद्रा में प्रतिमा विराजमान हैं, जबकि पार्श्व भागों में भगवान आदिनाथ व भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमायें विराजमान हैं । वेदिका पर 4 अन्य तीर्थंकर प्रतिमायें विराजमान हैं । इस वेदिका की सभी प्रतिमायें पद्मासन मुद्रा में आसीन हैं।
8. प्रवेश द्वार के सामने 3 वेदिकायें बनी हुई हैं । बायीं ओर स्थित वेदिका पर प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ की प्रतिमा विराजमान हैं । वेदिका पर 6 अन्य तीर्थंकर प्रतिमायें भी विराजमान हैं, एक प्रतिमा पर प्रशस्ति नहीं है। न ही प्रतीक चिह्न स्थित हैं । जिससे यह प्रतिमा अतिप्राचीन प्रतीत होती है। इससे सिद्ध होता है कि यह जिनालय अतिप्राचीन है। जिसका समय-समय पर जीणोद्धार होता रहा है ।
9. श्रद्धालु अब जिनालय के सबसे महत्वपूर्ण भाग में मध्य वेदिका के सामने पहुँचता है; जहाँ गंगा नदी के जल से उद्भूत प्राप्त हुई प्रतिमायें विराजमान हैं। ये प्रतिमायें अति अतिशयकारी, मनमोहक व भव्य हैं । वेदिका पर मध्य में जिनालय के मूलनायक भगवान श्री विमलनाथ विराजमान हैं । यह प्रतिमा चॉकलेटी ( कत्थई वर्ण की) रंग की पद्मासन मुद्रा में मुस्कराती प्रतीत होती है । इस प्रतिमा के बाल गुच्छ हैं व ऊपर चोटी के रूप में दिखाई पड़ते हैं । प्रतिमा के कर्ण कन्धों को स्पर्श करते हैं । मूलनायक के बायीं व दायीं ओर प्रथम व अंतिम तीर्थंकर भगवंतो की पद्मासन प्रतिमायें विराजमान हैं। एक प्रतिमा के पादमूल में प्रशस्ति, चिह्न व निर्माण काल भी अंकित नहीं है। श्रद्धालु यहां आकर भावविभोर हो जाते हैं और उनका यहां से हटने को मन नहीं करता । मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली इन प्राचीन प्रतिमाओं के दर्शन करने मात्र से पाप नष्ट होते हैं । वेदिका पर दो अन्य प्रतिमायें भी विराजमान हैं ।
10. मध्य वेदिका के दायीं ओर स्थित मनोहारी वेदिका पर कुल 7 प्रतिमायें विराजमान हैं । वेदिका के मध्य में आसीन प्रतिमा भगवान विमलनाथ की है जो अकल्पनीय रूप से अति कलात्मक व कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित है । .
11. इस वेदिका पर भी कुल 7 जिनबिम्ब स्थापित हैं, जिनमें मध्य में विराजमान प्रतिमा भगवान विमलनाथ की है । इस वेदिका पर प्रतिष्ठापित प्रतिमायें पद्मासन मुद्रा में स्थित है
इस तरह इस क्षेत्र के दर्शन कर दर्शनार्थियों का मन मयूर नाच उठता है व उन्हें पुनः इस क्षेत्र के दर्शन करने के लिए आने को प्रेरित करता है ।
क्षेत्र पर आधुनिकतक सभी सुविधाओं युक्त धर्मशाला मौजूद है । यहाँ यात्रियों को रुकने व भोजन पानी की समुचित व्यवस्था भी उपलब्ध है। यहां सरकारी अतिथि गृह भी है । जिसमें श्रद्धालु रुक सकते हैं। श्रद्धालुओं को चाहिये कि वे इस पावन पुनीत भगवान विमलनाथ की चार कल्याणक संपन्न भूमि व क्षेत्र के दर्शन कर अपने आप को कृतार्थ करें व क्षेत्र के विकास में अपना योगदान दें ।
184■ मध्य-भारत के जैन तीर्थ