________________
के लिये प्रति समय टैक्सियां, तांगे, इक्के व बसें मिलती हैं। उ.प्र. व देहली राज्य परिवहन की बसें भी कायमगंज, ऐटा, फरुखाबाद, अलीगढ़, आगरा व देहली से यहाँ आती हैं। आगरा से ऐटा होकर भी यहाँ पहुँचा जा सकता है। आगरा, कानपुर व दिल्ली से कपिला की दूरी क्रमशः 150, 180 व 325 किलोमीटर है।
यह जन्मस्थली गंगा नदी के सुरम्य तट पर स्थित है। वेदों व पुराणों में इस नगरी का अनेक स्थानों पर वर्णन मिलता है। यहाँ एक अघातिया टीला है। कहा जाता है कि यहीं भगवान विमलनाथ को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी। वास्तव में यहां पहले दिगंबर जैन मंदिर था। खुदाई करने पर उसके भग्नावशेष प्राप्त हो सकते हैं। पहले पौराणिक काल में अखण्ड पांचाल्य राज्य की राजधानी काम्पिल्य ही थी। यहाँ चैत्र कृष्ण अमावस्या से तीन दिन का तथा क्वार की कृष्णपक्ष अमावस्या से भी तीन दिन तक जैन मेला लगता है।
यहां एक विशाल परिसर में एक भव्य व आलीशान दिगंबर जैन मंदिर स्थित है। जिसमें 11 जगह दर्शन हैं। जिनालय लगभग 2 मीटर ऊँची जगती पर बना है। जिसका अपना विशाल प्रवेश द्वार है। जिनालय में स्थित वेदिकाओं आदि का विवरण इस प्रकार है
1. विशाल मानस्तंभ- जिनालय में प्रवेश करते ही दायीं ओर मुख्य प्रवेश द्वार के पास यह भव्य मानस्तंभ 45 फीट ऊँचा है; जिसके चारों ओर तीर्थंकर प्रतिमायें विराजमान हैं। मानस्तंभ में कुल 8 जिनबिम्ब स्थित हैं।
2. बड़ी प्रतिमा- मानस्तंभ के ठीक सामने लगभग 15 फीट ऊँची विशाल भव्य व आकर्षक भगवान श्री विमलनाथ की मनोहारी प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में विराजमान है। यह प्रतिमा काले पाषाण से निर्मित हैं व नवीन है।
3. चौबीसी- इस प्रतिमा के दर्शन करने के बाद श्रद्धालु चौबीसी जिनालय पहुंचता है। यहाँ आमने-सामने 12-12 जिनबिम्ब कायोत्सर्ग मुद्रा में विराजमान हैं। सभी प्रतिमायें समान आकार, प्रकार व लंबाई की हैं व मनोहारी हैं। कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित चौबीसी देश के कम स्थानों पर ही है। _4. चरण-चिह्न- आगे प्रवेश करने पर एक चबूतरे पर भगवान विमलनाथ के.प्राचीन चरण स्थापित हैं। यह चरण इसी जिनालय की नींव खोदते मुख्य द्वार के पास श्रद्धालुओं को प्राप्त हुये थे। इन चरणों के दर्शन मात्र से मन प्रफुल्लित हो जाता है।
5. चरण छत्री-आगे एक अन्य परिसर में प्रवेश करने के पूर्व श्रद्धालुओं को एक चरण छत्री में स्थित भगवान के चरण-चिह्नों के दर्शन होते हैं। ____6. छत्री के पास ही एक भव्य वेदिका पर तीन जिन-प्रतिमायें विराजमान हैं। जिनमें मध्य में स्थित भगवान विमलनाथ व उसके पार्श्व भागों में विराजमान भगवान शान्तिनाथ जी एवं मुनिसुव्रतनाथ की प्रतिमायें विराजमान हैं। भगवान विमलनाथ की प्रतिमा पद्मासन में है, जबकि अन्य दो प्रतिमायें कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं। वेदिका पर दो अन्य तीर्थंकर प्रतिमायें भी विराजमान हैं।
मध्य-भारत के जैन तीर्थ - 183