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यहाँ पर पूज्य श्री गणेश प्रसाद जी वर्णी ने एक रुपये के 64 पोस्ट कार्ड खरीद कर व उन्हें हाथ से लिखकर देश के 64 जैन दाताओं के पास भेजा था और भगीरथ वर्णी की सहायता से स्याद्वाद महाविद्यालय की स्थापना की थी। इस संस्था के वर्णी जी संस्थापक थे और उसके विद्यार्थी भी रहे। यह एक ऐसा महाविद्यालय रहा है जिसने देश व समाज को बड़े-बड़े जैन विद्वानों-पं. पन्नालाल जी साहित्यचार्य, पं. फूलचन्द शास्त्री, कैलाशचन्द्र आदि को पैदा किया। जिन्होंने आगे चलकर जैनधर्म का संदेश देश-विदेश के कोने-कोने तक पहुँचाया और अभूतपूर्व जागरण जैन समाज में पैदा किया।
यहाँ से हम वाराणसी के भेलूपुर स्थान पर पहुंचते हैं। यह पावन पुनीत स्थान तेईसवें तीर्थंकर भगवान श्री पार्श्वनाथ की जन्मभूमि है। यहाँ पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर में भगवान श्री पार्श्वनाथ स्वामी की भव्य, आकर्षक व मनोज्ञ प्रतिमा विराजमान हैं। साथ ही यहीं पद्मावती माता अपने शिरोभाग पर भी भगवान श्री पार्श्वनाथ को विराजमान किये स्थित हैं। यहाँ भगवान पार्श्वनाथ स्वामी . के गर्भ, जन्म व तप कल्याणक संपन्न हुये थे। यहीं पर एक भव्य मानस्तंभ व सुविधासंपन्न जैनधर्मशाला है।
वराणसी से 7 किलोमीटर दूर स्थित सारनाथ का नाम ही तीर्थंकर श्री श्रेयांसनाथ जी के नाम पर पड़ा है। सारनाथ जिसे पहले सिंहपुरी के नाम से जाना जाता था, में विश्वप्रसिद्ध स्तूप के समीप ही भगवान श्री श्रेयांसनाथ की जन्मभूमि पर एक जिनालय स्थित है। यहाँ भी भगवान के प्रथम तीन कल्याणक संपन्न हुये थे। जिनालय में भगवान श्रेयांसनाथ की भव्य व आर्कषक प्रतिमा विराजमान है।
भगवान श्री चन्द्रप्रभु का गर्भ व जन्म कल्याणक स्थान बनारस से 13. व सारनाथ से 10 किलोमीटर दूर गंगा तट पर स्थित है। इस सुरम्य व मनोहारी भू-भाग पर वर्तमान में एक विशाल प्राचीन जिनालय स्थित है, जिसमें भगवान श्री चन्द्रप्रभु की सकल कष्टहारी जीवों, को आनंद प्रदान करने वाली प्रतिमा विराजमान है।
काकिंदी
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यह प्राचीन नगरी 9वें तीर्थंकर भगवान श्री पुष्पदन्त की जन्मभूमि है। यहां भगवान श्री पुष्पदन्त के गर्भ, जन्म व तप कल्याणक संपन्न हुये थे। वर्तमान में यह नगरी उत्तर प्रदेश राज्य के देवरिया जिले में स्थित है। गोरखपुर से काकिंदी तीर्थ-क्षेत्र पहुँचते हैं। गोरखपुर से काकिंदी तीर्थ-क्षेत्र की दूरी लगभग 120 किलोमीटर हैं। यहां एक विशाल परिसर में स्थित जिनालय में भगवान श्री पुष्पदन्त की विशाल प्रतिमा विराजमान है। इनमें से कुछ तीर्थ-क्षेत्रों का वर्णन विस्तार रूप से मध्य भारत के तीर्थ-क्षेत्र में किया गया है।
मध्य-भारत के जैन तीर्थ - 181