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________________ जिनालयों से लगभग दो किलोमीटर दूर पुरातत्व विभाग ने एक प्राचीन जिनालय के अवशेषों को खोद निकाला है। पुरातत्व के अनुसार यहाँ भगवान संभवनाथ का विशाल जिनालय था। पुरातत्व के अनुसार ही खुदाई में इस जिनालय से लगभग एक दर्जन से अधिक प्राचीन जिनबिम्ब प्राप्त हुये थे। इनमें से एक प्राचीन जिनबिम्ब समीपस्थ जिला मुख्यालय बहराइच के जिन मंदिर में विराजमान हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि वर्तमान मूल जिनालय भगवान श्री संभवनाथ का जन्मस्थान था; जो बस्ती के अंदर था। तथा बस्ती व परकोटे के बाहर स्थित जिनालय का स्थान भगवान के दीक्षा तथा केवलज्ञान प्राप्ति का स्थान था; योंकि दीक्षा के लिये तीर्थंकर बिहार कर नगर के बाहर स्थित उद्यानों में दीक्षा लिया करते थे। यहाँ यात्रियों का स्वागत मुख्य सड़क पर स्थित विशाल प्रवेश द्वार करता है; जिसके ऊपर एक घोड़े पर राजकुमार श्री संभवनाथ को बैठा हुआ प्रदर्शित किया गया है। समीप ही श्वेताम्बर जिनालय भी स्थित है। यात्रियों की सुविधा के लिये इस पावन पुनीत तीर्थ-क्षेत्र पर सभी आधुनिक सुविधायें उपलब्ध हैं। यात्रियों के ठहरने के लिये विशाल धर्मशाला बनी हुई है व यहाँ यात्रियों के भोजन की भी सुंदर व्यवस्था है। यात्रियों को ऐसे पावन पुनीत भगवान संभवनाथ के जन्मस्थान के दर्शन अवश्य करना चाहिये व अपना जीवन सार्थक कर ऐसे जन्मस्थलों की सुरक्षा के लिये पर्याप्त मात्रा में खुले दिल से दान कर भी अपना जीवन सफल बनाना चाहिये। कौशाम्बी इलाहाबाद से 40 किलोमीटर दूरी पर फफीसा गांव के समीप प्राचीन नगरी कौशाम्बी स्थित थी। यहाँ छठे तीर्थंकर भगवान श्री पद्मप्रभु स्वामी का जन्म हुआ था। इस तीर्थ-क्षेत्र पर यात्रियों के रुकने व भोजन आदि की सभी व्यवस्थायें रहती हैं। यहाँ भगवान के चार कल्याणक हुये थे। विशाल परिसर में यहाँ भव्य जिनालय स्थित है। वाराणसी वाराणसी.व उसके आसपास स्थित चार तीर्थंकर भगवंतों के जन्म स्थान हैं। यह पावन नगरी प्रारंभ से ही पवित्र भूमि रही है। सातवें तीर्थंकर भगवान श्री सुपार्श्वनाथ स्वामी का जन्म स्थान इस नगरी के भदेनीघाट स्थान पर है। यहीं आपके गर्भ, जन्म व दीक्षा कल्याणक संपन्न हुये। इस स्थान पर वर्तमान में एक विशाल परिसर में भव्य व मनोज्ञ जिनालय स्थित है; जिसमें भगवान श्री सुपार्श्वनाथ विराजमान हैं। वेदिका पर अन्य तीर्थंकर प्रतिमायें भी विराजमान हैं। 180 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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