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________________ सकता; जिनका अपर नाम बाबा भी है। क्षेत्र स्थल पर बच्चों के मनोरंजन हेतु विविध प्रकार के झूले भी लगाये गये हैं। ___ अतिशय क्षेत्र दिगंबर जैन मंदिर के अतिरिक्त भोजपुर विशाल शिव मंदिर के लिये भी विख्यात है। इस मंदिर में शिव की विशाल शिवपिंडी रखी हुई है। जो अन्यत्र देखने को नहीं मिलती। यह मंदिर अत्यन्त कलात्मक बना हुआ है। भोपाल से आने वाले श्रद्धालुओं को भोजपुर क्षेत्र स्थित जिनालय के दर्शन अवश्य करना चाहिये। भिण्ड जिले के तीर्थ-क्षेत्र ___ 1. बरासो- भिण्ड से यह क्षेत्र लगभग 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित है अधिकांश प्रतिमायें पद्मासन मुद्रा में हैं। यह अतिप्राचीन जैन तीर्थ-क्षेत्र व मुनियों की तपस्थली भिण्ड जिले में स्थित है। यहाँ भगवान महावीर स्वामी का समवरशरण आया था। कुछ दूरी पर 3वीं शताब्दी से 15वीं शताब्दी के बीच की प्रतिमायें 3 जिनालयों में विराजमान हैं। पास से एक नदी प्रवाहित होती है। मंदिरों के बीच की दूरी लगभग 6 फलाँग है। चरण-चिह्न भी हैं। 2. बरही- यह चंबल नदी के किनारे भिण्ड-इटावा मार्ग पर स्थित है। नदी के किनारे स्थित इस जिनालय में 3 वेदिकायें हैं। यहाँ भी भगवान महावीर स्वामी का समवशरण आया था। 3. पावई (रत्नागिरी)- भिण्ड से इसकी दूरी 20 किलोमीटर है। भिण्ड जिले में पावई ग्राम के समीप कुवारी नदी के बीहणों में यह स्थित है। टीलों पर अनेक प्राचीन मंदिरों के भग्नावशेष पड़े हुये हैं। खुदाई करने पर अनेक जिनालय मिल सकते हैं। यहाँ ईंट, गारे व चूने से बनी तीर्थंकर प्रतिमायें बड़ी संख्या में मंदिर परिसर में रखीं है। अधिकांश जिनबिम्ब पद्मासन मुद्रा में आसीन हैं। मूल जिनालय में लगभग 2 दर्जन प्रतिमायें विराजमान हैं। प्रतिमायें काफी प्राचीन 5वीं से 11वीं शताब्दी के बीच की हैं। क्षेत्र जीर्ण स्थिति में हैं। इस जिनालय में तीन वेदिकाओं पर जिन प्रतिमायें विराजमान हैं। कहते हैं यहां पहले 108 जिनालय स्थित थे। भगवान नेमिनाथ व चन्द्रप्रभुजी की प्रतिमायें अति मनोज्ञ है। मुरैना जिले के तीर्थ-क्षेत्र सिंहोनिया- भगवान शान्तिनाथ की 16 फीट ऊँची व भगवान कुंथुनाथ व अरहनाथ की 8-8 फीट ऊँची कायोत्सर्ग मुद्रा में भव्य व आकर्षक प्रतिमायें 11वीं शताब्दी की हैं। भूगर्भ से प्राप्त कुल 19 अन्य प्रतिमायें भी हैं। ___ ग्वालियर किला- हाथी दरवाजा व सासबहू के मंदिर के बीच जिनालय सं. 1034 में बनवाया था। कनिंघम के अनुसार मुगल काल में यहाँ मंदिर की जगह 172 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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