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शुभचन्द्राचार्य से समामिचरण व्रत ले लिया था; व भोजपुर में ही उनकी अंतिम समाधि हुई थी । समाधि स्थल पर आज भी आचार्य श्री मानतुंगाचार्य के चरणचिह्न बने हुये हैं।
राजा भोज इन सब घटनाओं से बहुत चिंतित थे । उसने बाद में पश्चाताप स्वरूप यहाँ मुनि श्री की समाधि स्थल का निर्माण कराया था; व यहीं एक भव्य व विशाल जिनालय का निर्माण भी कराया था; जो इस सारी घटनाक्रम का साक्षी है । जिनालय -
1. भगवान शान्तिनाथ जिनालय - 65 x 65 फीट के चौकोर स्थल पर यहां 1000 वर्ष से भी अधिक प्राचीन जिनालय बना है । यह जिनालय शिल्प की दृष्टि बेजोड़ है । इस जिनालय में 16वें तीर्थंकर भगवान शान्तिनाथ की 22.5 फीट ऊँची विशाल प्रतिमा विराजमान है । यह खड्गासन मुद्रा में आसीन है। चेहरे से असीम शान्ति झलकती है। यहाँ के दर्शन करने से दर्शकों की मनोकामनायें पूर्ण होती हैं । यही यहाँ का सबसे बड़ी अतिशय है ।
भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा के दोनों पार्श्व भागों में 8 फीट ऊँची भगवान सुपार्श्वनाथ की प्रतिमायें खड्गासन मुद्रा में प्रतिष्ठित हैं । पादपीठ में स्थित शिलालेख से यह स्पष्ट होता है कि इन प्रतिमाओं की प्राणप्रतिष्ठा सं. 1157-58 में की गई थी। जहाँ यह जिनालय बना हुआ है उसे स्थानीय लोग मनुआ भांड का टेकरा कहते हैं ।
भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा के मुखमंडल के चारों ओर आकर्षक आभामंडल बना हुआ है व पार्श्व में चांवर ढोरते दो इन्द्रों की मूर्तियां भी बनीं है । कहते हैं कि विशाल मूर्ति के निर्माण हेतु शिलाखंड पास की चट्टान से लिया गया था; जो धर्मशाला के बाजू में स्थित है।
सभी जगह प्रायः भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा के दायें व बायें भगवान कुंथुनाथ व अरहनाथ की प्रतिमायें ही बनीं देखने को मिलती हैं; किन्तु इस जिनालय में दोनों ओर भगवान सुपार्श्वनाथ की प्रतिमायें स्थापित हैं; यह विशेष ध्यान देने की बात है । इस जिनालय के सामने ही आचार्य श्री मानतुंग स्वामी की प्राचीन छत्री बनी हुई है; जिसमें उनके चरण-चिह्न प्रस्तर शिला पर उत्कीर्ण हैं ।
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उक्त मंदिर के दर्शन को जाने के पहले ही दाहिनी ओर सिद्ध शिला बनी हुई हैं । यहीं आचार्य मानतुंग साधना किया करते थे । शिला के पृष्ठभाग में आचार्य श्री की प्रतिमा स्वाध्याय करते हुये उकेरी गई है । इस शिला के सामने भी खड्गासन में जिन - प्रतिमा स्थापित है।
क्षेत्र पर यात्रियों को रुकने के लिये आधुनिक धर्मशालायें बनीं हुई हैं; यहाँ सभी प्रकार की सुविधायें उपलब्ध हैं। इस क्षेत्र के जीर्णेद्धार में उ.प्र. ललितपुर जिले के ग्राम बालावेहट निवासी लालचन्द जैन का योगदान भुलाया नहीं जा
मध्य-भारत के जैन तीर्थ = 171