SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गंधर्वपुरी यह देवास जिले के तहसील मुख्यालय से 9 किलोमीटर दूर सोमवती (सोनवती) नदी के तट पर स्थित है। यहाँ तक पक्की सड़क है। इसका प्राचीन नाम गंधावल है। यह हिन्दू व जैनों का केन्द्र रहा है। यहाँ ग्राम पंचायत भवन के समीप पुरातत्व विभाग के व शीतला माता के चबूतरे पर ग्रामवासियों ने पुरातत्व साम्रगी को इकट्ठा करके रखा है। भगवान ऋषभदेव की एक प्रतिमा जिनके कंधों पर जटायें हैं, पुरातत्व सामग्री के साथ जमीन पर लेटी है। चरणों के दोनों ओर क्रमशः गोमुख यक्ष व चक्रेश्वरी यक्षिणी का अंकन हैं। दूसरी प्रतिमा गांव के बीच चमरपुरी की मात नामक एक पतली गली के किनारे किसी प्राचीन भग्न मंदिर के टीले पर खड़ी है, जो घुटनों तक भूमि में दबी है। ऊपर निकला भाग 9.5 फीट का है। यह दोनों प्रतिमायें कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं। दोनों पार्यों में 6.5 फीट ऊँचे चमरेन्द्र बने हैं। चक्रेश्वरी के 20 हाथ हैं। यहाँ पार्श्वनाथ, महावीर, शान्तिनाथ, पद्मप्रभु सुमतिनाथ भगवान की मूर्तियां भी हैं। चूलगिरी यह म. प्र. के बडवानी जिलान्तर्गत आता है। यहाँ से कुंभकर्ण, इन्द्रजीत आदि मोक्ष गये। इसे चूलाचल ने नाम से भी जानते हैं। क्षेत्र पर 1380 में प्रतिष्ठित प्रतिमाओं की संख्या सबसे ज्यादा है। मदनकीर्ति ने (12वीं शदी) यहाँ भगवान आदिनाथ की 50 हाथ ऊँची मूर्ति का जिक्र किया था। यह नगर पहले वृहदपुर के नाम से विख्यात था। पद्मपुराण "विन्ध्यवन की महाभूमि में जहाँ इन्द्रजीत के साथ मेघवाहन मुनिराज विराजमान रहे। मेघरव नाम का तीर्थ बन गया तथा रजो व तमोगुण से रहित महामुनि कुंभकर्ण योगी नर्मदा के जिस तीर से निर्वाण को प्राप्त हुये वह पिठरक्षत नाम का तीर्थ बना। पद्मपुराण "रावण की मृत्यु के बाद 56000 आकाशचारी मुनियों के साथ अनन्तवीर्य मुनिराज लंका पधारे। उन्हें रात्रि में केवलज्ञान प्राप्त हो गया। तब देवों ने आकर केवलज्ञान की पूजा की व गंधकुटी की रचना की। राम, लक्ष्मण, वानरवंशी, ऋक्षवंशी व राक्षसवंशी सभी लोग केवली के दर्शनों को आये व केवली का उपदेश सुन वहीं इन्द्रजीत, मेघनाथ, कुंभकर्ण, मारीच आदि ने लंका के कुसुमायुध उद्यान में व उनके समीप मुनि दीक्षा ले ली। 84 फीट ऊँची, भगवान आदिनाथ जी मूर्ति 29 फीट 6 इंच चौड़ी है जिनके पैर की लंबाई 13 फीट 9 इंच, नाक 3 फीट 11 इंच, आंख 3 फीट 3 इंच, कर्ण 9 फीट 8 इंच, पांव के पंजे की चौड़ाई 5 फीट है। एक लेख सं. 1223 का है। जीर्णोद्वार सं. 1516 में हुआ। निर्माण अर्ककीर्ति ने कराया था। मुख्य मंदिर के निकट 10 जिनालयों का निर्माण 15वीं सदी में हुआ था। बड़वानी के दिगंबर जैन मंदिर में सं. 1380 की भगवान नेमिनाथ की भव्य प्रतिमा विराजमान है। मारत और तीर्थ- 163
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy