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में जीवराज पापड़ी वाले ने कराई थी। छोटे मंदिर जी में सं. 1899 में प्रतिष्ठित कृष्ण वर्ण की 2.5 फीट ऊँची भगवान सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान है। सुपार्श्वनाथ के पार्श्व में मुंगिया वर्ण की भगवान महावीर स्वामी व सुपार्श्वनाथ की पद्मासन मूर्तियां विराजमान हैं। ये 1.8 फीट अवगाहना की है। कुछ अन्य प्रतिमायें भी विराजमान है। महामंडप में 5 फीट ऊँची कृष्ण वर्ण की भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा भी विराजमान है। यात्रियों को रुकने के लिये धर्मशालायें भी हैं। गुरुकुल संचालित हैं। व मेला फाल्गुन शुक्ल 8 से 15 तक लगता है।
उज्जैन भगवान महावीर स्वामी पर मुनि अवस्था में घोर उपसर्ग यहीं के अतिमुक्तक श्मशान घाट पर (परीक्षा हेतु) महादेव रुद्र ने किया था। यहीं अंतिम श्रुतकेवली भद्रबाहु संघ सहित पधारे थे तथी निमित्त ज्ञान से पता चला कि यहाँ 12 वर्ष का घोर अकाल पड़ने वाला है। वे बिना आहार लिये व राजा चन्द्रगुप्त को दीक्षा दे व अपने साथ ले यहाँ से दक्षिण भारत चले गये थे। चन्द्रगुप्त का नाम दीक्षा के बाद विशाख रख दिया गया। इस अकाल के समय उत्तर भारत के साधु भ्रष्ट होकर श्वेत वस्त्र धारण करने लगे थे व मुनि आचार के विरुद्ध आचरण करने लगे थे। ऐसा आचार्य विशाख ने लौटने पर देखा। इस तरह यहीं से श्वेतांबर पंथ प्रारंभ हुआ। यहीं अकंपनाचार्य व उनके संघ के साथ बलि का विवाद हुआ था। ऐसी अनेक कथायें उज्जैन से जुड़ी है। - ग्रंथों में ईसा की प्रथम शताब्दी से चौदहवीं सदी तक मंगलपुर के अभिनंदन नाथ भगवान का जिक्र आता है। आचार्य जिनप्रभ सूरि ने मंगलपुर के निकट मेदपल्ली से अभिनंदन नाथ की मूर्ति होने का उल्लेख किया है; जो अतिशयकारी थी व 9 खंड होने पर भी स्वतः जुड़ गई थी। वर्तमान में यह कहना कठिन है कि वह प्रतिमा किस स्थान पर विराजमान थी। उज्जैनी चन्द्रगुप्त की उप-राजधानी थी।
बदनावर धार जिले की एक तहसील, परमार युग में इसका नाम वर्द्धनापुर था। यहाँ के संग्रहालय में 27 जैन प्रतिमायें 9वीं से 14वीं शताब्दी के बीच की रखीं हैं। इंदौर से यह 90 किलोमीटर दूर बलवन्ती नदी के किनारे है। इसके वर्धनपुर; वर्धमानपुर नाम भी प्राप्त होते हैं।
162 - मध्य भारत के जैन तीर्थ