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________________ मध्यप्रदेश के अन्य तीर्थ मक्सी पार्श्वनाथ यह तीर्थ-क्षेत्र उज्जैन से 38 किलोमीटर, इंदौर से 72 किलोमीटर व मक्सी रेल्वे स्टेशन से 3 किलोमीटर दूर है। यह शाजापुर जिले में स्थित है। महमूद गजनवी ने मक्सी पहुंचकर रात्रि विश्राम किया व यहाँ के पार्श्वनाथ मंदिर व मूर्ति को तोड़ने की योजना बनाई। किन्तु रात को वह भयानक रूप से बीमार पड़ गया । यह सोच कि यह भगवान पार्श्वनाथ का चमत्कार है; उसने फौज को आदेश दिया कि इस मंदिर व मूर्ति को कोई नुकसान न पहुँचाया जावे। प्रायश्चित स्वरूप उसने मंदिर के मुख्य द्वार पर ईरानी शैली के 5 कंगूरे बनवाये जिससे भविष्य में भी कोई मुस्लिम इसे हानि न पहुँचाये। ये अभी भी बने हैं। ... एक जनश्रुति के अनुसार कुछ चोर ताला तोड़ कर चोरी के इरादे से यहाँ घुसे, किन्तु जब उन्होंने गठरी बांध ली तो अंधे हो गये व रात भर रास्ता खोजने पर भी उन्हें रास्ता नहीं मिला। सुबह वे माल सहित पकड़े गये। औरतें आज भी ब्याह शादियों में गीत गाती हैं। "मक्सी के पारसनाथ, बन्ना/बन्नी (दूल्हा/ दुल्हन) पर रक्षा कीजिये।" इन सब बातों से इस तीर्थ-क्षेत्र का महत्व स्वतः सिद्ध है। ___ मदनकीर्ति व आचार्य जिनप्रभ सूरि ने इस तीर्थ-क्षेत्र का वर्णन किया है। ये 13वीं सदी के थे। इससे स्पष्ट है कि इस मंदिर का अस्तित्व 11वीं सदी के पहले से है। स्थानीय लोग इसे पहले भैरों के नाम से पूजते थे, सिंदूर आदि लगाते थे; क्योंकि एक प्रचलित कथा के अनुसार एक ब्राह्मण यहाँ प्याऊ चलाता था। स्वप्न में उसे प्याऊ के नीचे भगवान के दबे होने की बात पता चली। उसने खोदा तो यह मूर्ति निकली। कहा जाता है कि शाजापुर के एक दिगंबर जैन श्रावक ने एक विशाल जिनालय बनाकर उसमें इस मूर्ति को प्रतिष्ठित कराया था। यह प्रतिमा काले पाषाण से निर्मित अतिभव्य व मनोहारी पद्मासन मुद्रा में आसीन है। प्रतिमा की अवगाहना 3.5 फीट लगभग है। मूर्ति के सिर पर 7 नाग छाया किये हुये हैं। परिकर में गज, श्रावक-श्राविका व चामरधारी इन्द्र भी बने हैं। मूलवेदी के दायें, बायें स्थित पार्श्व वेदिकाओं पर क्रमशः नेमिनाथ व पार्श्वनाथ की पद्मासन प्रतिमायें विराजमान हैं। इनके भी पार्श्व में कायोत्सर्ग मुद्रा में तीर्थंकर प्रतिमायें विराजमान है। ___टीकमगढ़ निवासी चौ. लक्ष्मणदास प्राणसुखदास ने यहाँ छोटे मंदिर का निर्माण कराया था। बड़े मंदिर की वेदी में परिक्रमा-पथ में 42 छोटे-छोटे देवालय बनें है; जिनमें 38 जिनबिम्ब स्थापित हैं। इनकी स्थापना सं. 1548 मध्य-भारत के. जैन तीर्य--161
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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