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M.IHAR
लियोडोरस
मोडोरस स्तम्भ
यारसपर
साधी
धरणेन्द्र पद्मावती की मूर्तियां भी उत्कीर्ण हैं। यह प्रतिमा 10वीं सदी की हैं व चंदेल शैली की हैं। जिनालय के ऊपर स्थित वेदिका में नवीन जिनबिम्ब विराजमान है। मालादेवी जिनालय 2 फर्लाग दूर है। यह जिनालय नागर-शैली का है। इसके गर्भगृह में 5.25 फीट ऊँची भगवान शान्तिनाथ की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसके परिकर में तीन छत्र, आकाशचारी गंधर्व, चमरेन्द्र, यक्ष- यक्षिणी व गज बने हैं। दायीं ओर 5 फीट 5 इंच ऊँची एक कायोत्सर्ग मुद्रा में तीर्थंकर प्रतिमा विराजमान है। यहीं दीवाल के सहारे 4.5 फीट तथा 3.25 फीट ऊँची पद्मासन प्रतिमायें भी विराजमान हैं।
एक अन्य गर्भगृह में 10.5 फीट ऊँची कायोत्सर्ग मुद्रा में भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा व 7 अन्य तीर्थंकर प्रतिमायें विराजमान हैं। ये सभी 2 फीट से 3 फीट ऊँची कुछ पद्मासन व कुछ कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं। बायीं ओर की दीवाल में भी 5 फीट 3 इंच ऊँची भगवान शान्तिनाथ जी की कायोत्सर्ग मुद्रा में प्रतिमा विराजमान है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर भगवान शान्तिनाथ की यक्षिणी महामानसी का सुंदर अंकन है। इस जिनालय की सुर सुन्दरी नामक मूर्ति को विश्व मूर्तिकला प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त हो चुका है। मंदिर परिसर में चार चरण-चिह्न भी बने हैं, जिनके पास एक तीर्थंकर प्रतिमा भी उत्कीर्ण है। इससे स्पष्ट होता है कि यह मुनियों की तपोभूमि रही हैं। एक अन्य स्थान पर 1 चरण-चिह्न और अंकित है।
वज्रमठ- यहां से दो फर्लाग की दूरी पर वज्रमठ जिनालय है। यह जिनालय खजुराहो के पार्श्वनाथ जिनालय के सदृश्य है। इस जिनालय में तीन गर्भगृह हैं। मध्य के गर्भगृह में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की 7 फीट ऊँची पद्मासन प्रतिमा आसीन है। जिसके परिकर में तीन छत्र, भामंडल, गज, गंधर्व, चमरेन्द्र आदि उत्कीर्ण हैं। परिकर में दो पद्मासन व दो कायोत्सर्ग मुद्रा में मूर्तियां भी उत्कीर्ण हैं। बायीं ओर के गर्भगृह में लगभग 8 फीट ऊँची कायोत्सर्ग मुद्रा में तीर्थंकर प्रतिमा विराजमान हैं। परिसर में छत्र, चैत्यालय स्थित प्रतिमायें आदि बनीं हैं। दायीं ओर के गर्भगृह में लगभग 5 फीट ऊँची कायोत्सर्ग मुद्रा में तीर्थंकर प्रतिमा विराजमान है। परिकर में तीन छत्र, गंधर्व आदि उत्कीर्ण है। पास में 2 फीट ऊँची एक पद्मासन प्रतिमा भी कायोत्सर्ग मुद्रा में विराजमान है। इस जिनालय की बाह्य भित्तियां अलंकृत हैं। ये सभी जिनालय 9-10वीं शताब्दी के बीच के निर्मित हैं।
160 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ