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50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । विश्वप्रसिद्ध सांची के स्तूप विदिशा नगरी से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यात्रियों को यहां के दर्शन कर अवश्य ही धर्मलाभ लेना चाहिये ।
उदयपुर
यह स्थान विदिशा से 45 किलोमीटर उत्तर में है। इस नगर की स्थापना राजा भोज के भाई उदयादित्य ने की थी । वर्तमान में यहाँ एक जिनालय भग्न दशा में है; जिसमें कई विशाल तीर्थंकर मूर्तियाँ अवस्थित हैं । ये मूर्तियाँ काफी प्राचीन 10वीं शताब्दी के पूर्व की लगती हैं 1
पठारी
यह विदिशा से उत्तर-पूर्व दिशा में 80 किलोमीटर दूर गडोरी ज्ञाननाथ पहाड़ियों के बीच स्थित है। यहाँ 47 फीट ऊँचा मूर्तिविहीन एक मानस्तंभ है । यहाँ सभी धर्मों के धर्मस्थल बने हैं। पहाड़ी के दक्षिण-पूर्व में बढ़ोह ग्राम के पास विशाल कलापूर्ण अलंकृत एक गडरमल नाम का विशाल मंदिर बना है । कहते हैं यह जिनालय एक गडरिये ने बनवाया था; जो भेड़ें चराता था; किन्तु कई दिनों से इसके समूह में एक भेड़ आकर मिल जाती व शाम को झुंड से अलग हो वापिस चली जाती। एक दिन गड़रिये ने उस भेड़ का पीछा किया; तो वह एक गुफा में पहुंचा जहाँ भेड़ तो नहीं एक मुनि तपस्यारत थे । गड़रिये ने उनसे भेड़ की चराई मांगी। तो मुनि ने उसकी झोली में कुछ डाल दिया । घर जाकर देखने पर ये मक्के के दाने थे; जिसे गड़रिये ने क्रोध में आकर एक कंडों के ढेर में फेंक दिया। उनके प्रभाव से सारे कंडे सोने के हो गये । प्रसन्न हो इसी गड़रिये ने यह जिनालय व इसके आसपास तालाब आदि बनवाये । इस मंदिर के उत्तर-पश्चिम में पहाड़ी की तलहटी में जैन मंदिरों का एक समूह है। ये 8वीं शताब्दी के है; जो जीर्ण हालत में हैं । किन्तु इनमें कुछ वेदियां व मूर्तियों ठीक हालत में हैं । मूर्तियां 8 फीट से 12 फीट ऊँची हैं तथा कायोत्सर्ग व पद्मासन दोनों मुद्राओं वाली है। एक जगह चरण - चिह्न भी विराजमान है । यहीं ज्ञाननाथ पहाड़ी पर एक 3 भाग वाली गुफा है; जहां गड़रिये को मुनि श्री के दर्शन हुये थे । इस गुफा में अलंकृत खंबे हैं। जिन पर जैन मूर्तियां बनीं हुई हैं।
ग्यारसपुर
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यह विदिशा सागर मार्ग पर विदिशा से 38 किलोमीटर दूर दो प्राकृतिक सुंदर पहाड़ियों के मध्य बसा है । यह शीतलनाथ भगवान की तपोभूमि है । यहाँ वज्रमठ व मालादेवी ये दोनों जैन मंदिर हैं। इनका शिल्प सौष्ठव अत्यन्त उत्कृष्ट कोटि का है इसे अतिशय क्षेत्र भी कहते हैं । यहाँ नगर के जिनालय में 5 फीट ऊँचे प्रस्तर खंड में 24 तीर्थंकरों की प्रतिमायें उत्कीर्ण हैं; जिनके मध्य में भगवान पार्श्वनाथ की सप्तफणी प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित है। परिकर में पुष्पमाला लिये देवियां,
मध्य-भारत के जैन तीर्थ ■ 159