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मूर्ति लेख का आशय निम्नलिखित है- “ सिद्धो को नमस्कार हो । वैभव संपन्न, गुणों के समुद्र गुप्त वंश के राजाओं के राज में सं. 106 के कार्तिक मास की कृष्ण पंचमी के दिन गुफा के द्वार पर विस्तृत सर्पफण से युक्त शत्रुओं को जीतने वाले जिन श्रेष्ठ पार्श्वनाथ की मूर्ति शमदम युक्त शंकर ने बनवायी जो आचार्य भद्र के अन्वय के भूषण और आर्य कुलोत्पन्न आचार्य गोशर्म मुनि का शिष्य था। दूसरों द्वारा अजेय, शत्रुओं का विनाश करने वाले अश्वपति संघिल भट और पद्मावती का पुत्र था । शंकर इस नाम से विख्यात था और यतिमार्ग में स्थित था । वह उत्तर कुरुओं के सदृश्य उत्तर दिशा के श्रेष्ठ देश में उत्पन्न हुआ था । उसके इस पावन कार्य में जो पुण्य हुआ हो, वह सब कर्मरुपी समूह के क्षय के लिये हो ।" यह कुमार गुप्त के शासन काल में था ।
इसी गुफा की पश्चिमी दीवाल पर एक आला बना हुआ है। इस आले में भगवान शीतलनाथ के चमत्कारी चरण-चिह्न उत्कीर्ण हैं; जिनके दर्शन मात्र से लोगों के पाप धुल जाते हैं, व दर्शनार्थी की भावनायें पवित्र होने लगती हैं। गुफा भित्ति पर भी चार जिन - प्रतिमायें उत्कीर्ण हैं व एक तीर्थंकर मूर्ति विराजमान है। यह मूर्ति, मूर्ति-भंजकों द्वारा ध्वंस की गई है। इस मूर्ति के पास ही एक शिलालेख है; जिस पर भगवान पार्श्वनाथ की जिन-प्रतिमा की स्थापना का उल्लेख है । एक अन्य प्राचीन जिनालय में पहाड़ी पर 4.5 फीट ऊँची 5 फणावली युक्त जिसके परिकर में छत्र, आकाशगामी गंधर्व, यक्ष, यक्षिणी (मानवी / काली), श्रावक-श्राविकायें आदि उत्कीर्ण हैं; भगवान सुपार्श्वनाथ की भव्य प्रतिमा विराजमान है । यह प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में है। परिकर में कुछ अन्य छोटी-छोटी 2 तीर्थंकर प्रतिमायें भी है।
जिनालय - गुफाओं के पास एक धर्मशाला का निर्माण किया गया है; जिसमें भी एक जिनालय में नवीन जिनबिम्ब की स्थापना की गई है ।
अन्य जिनालय - इसी प्रकार गुफाओं की ओर जाते समय मार्ग में एक परकोटे में बगीचा स्थित है । इस बगीचे में भी एक जिनालय स्थित है; जिसमें खड्गासन मुद्रा में भगवान शीतलनाथ का विशाल जिनबिम्ब प्रतिष्ठित है ।
उदयगिरी स्थित गुफा क्रं 6 व 7 में भी शिलालेख उत्कीर्ण हैं । इस शिलालेख में सिद्ध भगवंतों को नमस्कार किया गया है। ये गुफायें जैन श्रमणों की साधना स्थली रही है ।
विदिशा में दो से अधिक दिगंबर धर्मशालायें स्थित है; जहां ठहरने की आधुनिकतम सुविधायें उपलब्ध हैं । एक जैनधर्मशाला उदयगिरी में भी स्थित है; जहां सभी आधुनिकतक सुविधायें उपलब्ध हैं । दक्षिण भारत के जैन बद्री स्थित, एक शिलालेख में उल्लेख है कि प्रमुख जैन संत आचार्य समन्तभद्र स्वामी विदिशा आये थे; व उन्होंने यहां आकर जिनशासन की ध्वजा पताका फहराई थी। विदिशा -नगर में अनेक भव्य जिनालय स्थित हैं। श्रद्धालुओं को यहां के दर्शन भी करना चाहिये । विदिशा नगर दिल्ली-भोपाल रेलमार्ग पर भोपाल से पहले का स्टेशन है । यहां कुछ लंबी दूरी की रेलगाड़ियां रुकती हैं। बस मार्ग से यह भोपाल से लगभग
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158 ■ मध्य-भारत के जैन तीर्थ