________________
विदिशा के श्री शीतलनाथ दिगंबर जैन मंदिर में स्थापित है; जिसमें इनकी सल्लेखना का भी उल्लेख है।
जिनालय- विदिशा नगर स्थित बड़े मंदिर में विराजमान भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा सं. 1534 में प्रतिष्ठित व अतिभव्य प्रतिमा है। विदिशा के इस जिनालय का नाम, श्री शीतलनाथ दिगंबर जैन मंदिर है। यह धवल श्वेत वर्ण की प्रतिमा है।
सन् 1940 में ठाकुर भैरोंसिंह की विजय मंदिर के पास स्थित हवेली से एक विशाल पत्थर निकालते समय 10 फीट नीचे एक विशाल जैन मंदिर निकला। इस मंदिर में जमीन में दबी हुई सुन्दर व कलात्मक जैन दिगंबर प्रतिमायें निकली थीं। इनमें एक प्रतिमा भगवान शीतलनाथ की थी; इस मूर्ति के दोनों ओर चंवर लिये इन्द्र उत्कीर्ण हैं। शिरोभाग के दोनों ओर भी 7 जिन-प्रतिमायें 5 खड्गासन व 2 पद्मासन मुद्रा में उत्कीर्ण हैं। शासन देवियां भी बनी हुई हैं। प्रतिमा की ऊँचाई लगभग 5 फीट हैं।
उदयगिरी की गुफायें- ये गुफायें विदिशा से 6 किलोमीटर व सांची से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां 2 किलोमीटर लंबी पहाड़ी पर गुफायें बलुआ पत्थर से निर्मित हैं। प्राचीन भद्दलपुर पहले बेतवा नदी के इस पार और उस पार दोनों ओर लगभग 4-5 किलोमीटर विस्तार में बसा हुआ था। वर्तमान में उदयगिरी की विश्वप्रसिद्ध प्राचीन गुफायें वर्तमान विदिशा नगर से 3 किलोमीटर की दूरी पर बेतवा नदी के दूसरे किनारे पर स्थित हैं। इस गिरी पर कहने को तो 20 गुफायें हैं। किन्तु इनमें से गुफा क्र.1 देश की प्राचीनतम गुफाओं में से है। इस गुफा में जैनधर्म के 7वें तीर्थंकर भगवान सुपार्श्वनाथ की भव्य पाषाण प्रतिमा विराजमान हैं। समीपवर्ती प्राकृतिक दीवाल पर भी कायोत्सर्ग मुद्रा में तीर्थंकर मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। प्रतिमा के दोनों ओर चांवरधारी इन्द्र, हाथी, शेर आदि भी उत्कीर्ण हैं।
पहाड़ी के उत्तरी छोर पर गुफा क्रमांक 20 स्थित हैं। इस गुफा में 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की 10वीं सदी की 4.25 फीट ऊँची भूरे रंग की अतिमनोज्ञ प्राचीन पाषाण प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा पद्मासन में स्थित है। एवं इसकी प्रमुख विशेषता यह है कि अष्ट प्रतिहार्यों से युक्त है। मस्तक के ऊपर सात फणावली अवस्थित है। गंधर्व देव, अन्य तीर्थंकर प्रतिमायें, शार्दूल, गज, चमरधारी इन्द्र भी प्रतिमा के परिकर में उत्कीर्ण हैं। आगे के कक्ष में दो पद्मासन प्रतिमायें भगवान पार्श्वनाथ की उत्कीर्ण हैं। प्रतिमाओं के मध्य में विद्याधर पूजा की सामग्री लिये खड़े हैं। एक अन्य भीतरी कक्ष में 8.5 फीट ऊँची भगवान आदिनाथ की प्रतिमा भी उत्कीर्ण हैं। चेहरे के पीछे भव्य भामंडल का अंकन भी है। यक्ष-यक्षिणी, चमरधारी इन्द्र भी परिकर में उत्कीर्ण हैं। मुनियों की तपस्या के लिये दोनों ही कक्षों में गुफानुमा स्थान उत्कीर्ण किय गये हैं। यहाँ गुप्त सं. 106 का भी भित्ति पर उल्लेख है। यह मध्यप्रदेश में प्राप्त जैन अभिलेखों में सबसे प्राचीन है, जिसमें पार्श्वनाथ भगवान की मूर्ति की प्रतिष्ठा का उल्लेख है।
मध्य-भारत के जैन तीर्थ - 157