SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पौराणिक तीर्थ-क्षेत्र भद्दलपुर विदिशा व उदयगिरी की गुफायें भरत क्षेत्र के वर्तमान चौबीस तीर्थंकरों में से 10वें तीर्थंकर भगवान शीतलनाथ की गर्भ, जन्म व तप कल्याणक भूमि भद्दलपुर ही है; यह निर्विवाद सत्य है। पौराणिक भद्दलपुर के अन्य अनेक नाम भी मूर्तियों के नीचे दी गई प्रशस्तियों में मिलते हैं। ये नाम हैं-भद्दिलपुर, भद्रपुर, बेसनगर, विश्वनगर, वैश्यनगर, वैदिसा, बेदसा, भेलसा आदि। भगवान शीतलनाथ के चरण कमलों से यहां की धरा का कण-कण पवित्र है। यही नहीं पौराणिक गाथाओं में यह भी उल्लेख है कि भगवान नेमिनाथ का समवशरण भद्दलपुर आया था। भगवान महावीर स्वामी ने भी यहां आकर चातुर्मास किया था। श्वेतांबर ग्रंथ त्रिशष्टि शलाका में उल्लेख है, कि 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी ने यहां 5वां चातुर्मास किया था। उत्तर पुराण के अनुसार भगवान महावीर का समवशरण विदिशा के निकट रथावर्त पर्वत पर आया था। इस पर्वत का उल्लेख रामायण में भी आता है। विदिशा के पास स्थित उदयगिरी की गुफायें ही, जो एक पर्वत पर हैं; रथावत पर्वत है। कुजरावर्त पर्वत से आर्यवज्र स्वामी ने तपस्या कर मोक्ष प्राप्त किया था। डॉ. जगदीशचन्द्र ने अपनी पुस्तक 'भारत के प्राचीन तीर्थ' में इन्हीं दो पर्वतों को उदयगिरी कहा है। इस गिरी पर 20 प्राचीन गुफायें हैं। जिनमें से नं.1 व नं.20 गुफायें जैन गुफा मंदिर के रूप में है। गुफा नं.5 व 6 में उत्कीर्ण शिलालेख भी जैन आम्नाय से संबंधित है; जिनमें सिद्ध भगवान को नमस्कार किया गया है। ये गुफायें जैन श्रमणों की तपस्थली रही है। गिरनार गौरव' पुस्तिका पृ. 26-27 में लिखा है- "धर्मचक्र प्रवर्तन के लिये सर्वज्ञ प्रभु नेमिनाथ ने बिहार किया; वे भद्दलपुर गये और वहाँ देवकी के 6 पुत्रों को मुनि दीक्षा दी।" हरिवंश पुराण व महापुरण में भी इस तीर्थ का उल्लेख आता है। ग्वालियर गजेटियर के अनुसार पौराणिक काल में विदिशा का नाम भद्रावती या भद्रावतीपुरम था। जैन ग्रंथों में इसका नाम भद्दलपुर या भद्दिलपुर मिलता है। इसी गजेटियर में जैन श्रमण भद्रबाहु का उल्लेख भी मिलता है। जो ई.पू. 53 से 150 के बीच यहाँ से उज्जैन व फिर उज्जैन से यहाँ पधारे थे। मध्यप्रदेश गजेटियर खण्ड विदिशा में लिखा है "विदिशा जैनधर्म की पीठ रही है। 10वें तीर्थंकर शीतलनाथ जी का जन्म यहाँ हुआ था। आज भी शीतल जयन्ती यहाँ उत्साह पूर्वक मनाई जाती है।" जन्म पट्टावलियां एकमत से उल्लेख करती है कि मूलसंघ के प्रथम 26 भट्टारकों की पीठ भद्दलपुर रही है। शवें भट्टारक महाकीर्ति मुनिराज भद्दलपुर में हुये; किन्तु वे अपनी पीठ यहाँ से उज्जैन ले गये थे; (पीटरसन रिपोर्ट 1883-84 इन्डियन ऐण्टी क्वेरी 21 पृ. 58)। आज भी महाकीर्ति मुनिराज की दुर्लभ प्रतिमा 156 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy