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बूढ़ी चंदेरी
चंदेरी से पिछोर, खनियाधाना शिवपुरी सड़क मार्ग पर चंदेरी से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह क्षेत्र अतिप्राचीन है । वास्तव में प्राचीन चंदेरी यही है । यहाँ मुख्य सड़क से हटकर 5 किलोमीटर अंदर जाना पड़ता है। चंदेरी ईशागढ़ सड़क मार्ग पर स्थित भाण्डरी गांव से भियादान्त होते हुये भी यहाँ पहुँचा जा सकता है। इस मार्ग से बूढ़ी चंदेरी 21 किलोमीटर की दूरी पर है। यह घने जंगलों के बीच सुरम्य पर्वत पर स्थित है । यह तीर्थ मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिला के अर्न्तगत आता है ।
भारतीय पुरासंपदा की जितनी अधिक क्षति यहाँ पहुँचाई गई है; व तस्करी आदि के माध्यम में जो हानि पहुँचाई गई है उसका शब्दों से वर्णन करना कठिन है । तस्करों ने वर्षों तक यहां से हजारों मूर्तियों की तस्करी की है। 15वीं सदी के पहले तक यह चंदेरी एक बड़ा शहर था। फारसी इतिहासकार फरिस्ता व इब्नबतूता ने इसी चंदेरी का उल्लेख किया है ।
इन नगर को शिखर पर पहुंचाने का श्रेय चंदेल शासकों को जाता है; जिन्होंने यहां का खूब विकास किया। वर्तमान में यहाँ की अधिकांश शेष प्रतिमायें पुरातत्व विभाग ने वर्तमान चंदेरी स्थित संग्रहालय में सुरक्षित रख दी हैं ।
आमनचार
यह तीर्थक्षेत्र चंदेरी - मुंगावली मार्ग पर स्थित सेहराई गांव से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दोनों ही जगह से यह 22 किलोमीटर दूर है । यहाँ गांव के भीतर बाहर, गालियों, बाजारों, घरों, कुओं, पेड़ों के नीचे सभी जगह जैन मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं। गांव में एक जिनालय भी है; जिसमें प्राचीन काल का एक सहस्रकूट चैत्यालय भी स्थित है। यह शिल्प का एक अद्भुत नमूना है । यहाँ की मूर्तियां आदि 11-12वीं सदी की हैं
भियादान्त
यह तीर्थ क्षेत्र उर्वशी ( ओर) नदी के सुरम्य तट पर स्थित एक सुंदर पहाड़ी के ऊपर स्थित है वर्तमान में यह अशोकनगर जिले में आता है । यह स्थान चंदेरी ईसागढ़ रोड़ पर चंदेरी से 13 किलोमीटर दूर स्थित भाण्ड गांव से 5 किलोमीटर दूर कच्चे मार्ग पर स्थित है यहाँ चंदेरी ईसागढ़ रोड़
154 ■ मध्य- भारत के जैन तीर्थ