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गुरीलागिरी यह अतिशय क्षेत्र अशोकनगर जिले के तहसील मुख्यालय चंदेरी से 7 किलोमीटर दूर स्थित है। ललितपुर से इस क्षेत्र की दूरी 30 किलोमीटर है। सिरसौद ग्राम से गुरीलागिरी मात्र 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
यहां 12वीं सदी के विख्यात धर्मात्मा श्रद्धालु पाड़ाशाह ने एक मंदिर बनवाया था। इसके अतिरिक्त यहाँ अन्य जिनालय भी हैं। प्राचीन काल में यहाँ विशाल नगर था। क्योंकि यहाँ सैंकड़ों भवनों के भग्नावशेष यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं। मुगल शासकों ने यहाँ के मंदिरों व मूर्तियों को तोड़ने में कोई कसर नहीं छोडी। यहाँ स्थित जिनालय जिस रंग के पाषाण से बने हैं, उस जिनालय में उसी रंग के पाषाण की मूर्तियां भी विराजमान है।
स्थानीय निवासियों में इस क्षेत्र के प्रति अगाढ़ श्रद्धा देखने को मिलती है; इसीलिये स्थानीय लोग अपने बच्चों का मुंडन यहीं कराते हैं। यहाँ आकर लोग मनौती भी मांगते हैं व इच्छा पूर्ण होने पर पूजा-अर्चना करते व चढ़ावा भी चढ़ाते हैं।
यह तीर्थ सुरम्य 'प्राकृतिक वातावरण के बीच घने वनों से आच्छादिक सुंदर पहाड़ी के ऊपर स्थित है। पर्वत की तलहटी में एक सुंदर तालाब बना है। पहले यहाँ हजारों जैन प्रतिमायें थीं; जो चोरी कर ली गई । यहाँ के क्षेत्र पर स्थित जिनालय का वर्णन इस प्रकार है
शान्तिनाथ जिनालय- मंदिर के मुख्य प्रवेशद्वार के ऊपर एक छोटी सी तीर्थंकर प्रतिमा उत्कीर्ण है। उसके शिरोभाग के दोनों ओर हाथी बने हैं। इन्द्र-इन्द्राणी भगवान की सेवा में भक्ति भाव से बैठे हैं। इस जिनालय में भगवान शान्तिनाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा में 16 फीट ऊँची प्रतिमा विराजमान हैं। सिर पर ऊपर तीन लोक के नाथ होने के कारण तीन छत्र सुशोभित हैं। छत्रों के ऊपर दुन्दिभिवादक हैं। चरणों के पार्श्व भागों में चमर लिये इन्द्र खड़े हैं। दो श्राविकायें भी पूजनरत उकेरी गई हैं। __इस जिनालय में एक शिलाफलक पर भगवान नेमिनाथ स्वामी की कायोत्सर्ग मुद्रा में प्रतिमा भी विराजमान है। दोनों पार्यों में अम्बिका की दो मूर्तियां भी उत्कीर्ण हैं। एक अन्य जगह भगवान पार्श्वनाथ की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। प्रतिमा के दोनों ओर दो-दो तीर्थंकर प्रतिमायें कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित है। दायीं ओर की प्रतिमा व पार्श्वनाथ स्वामी के सिर पर फणावली खंडित है। एक पद्मासन प्रतिमा जो खंडित है; यहाँ रखी
152 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ