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की छत भी नीची है। यह 16वीं शताब्दी निर्मित है। इस गुफा में मूलनायक के रूप में तीसरे तीर्थंकर भगवान संभवनाथ की 3.5 फीट ऊँची पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसके परिकर में गज पर सवार चमर धारी इन्द्र दोनों ओर खड़े हैं। इस प्रतिमा के दायीं ओर चन्द्रप्रभु, शान्तिनाथ, कुंथुनाथ व पुष्पदन्त की तथा बाईं
ओर अनन्तनाथ, महावीर स्वामी, पार्श्वनाथ, पद्मप्रभु: व संभवनाथ की प्रतिमायें विराजमान है। ये सभी जिन-प्रतिमायें मूलनायक की प्रतिमा से छोटी है। इसी गुफा में कायोत्सर्ग मुद्रा में बाहुबली स्वामी की मूर्ति बनी है। जिनकी ग्रीवा में, कटिभाग में, पैरों पर सर्प लिपटे हुये हैं। नाभि के ऊपर दोनों ओर दो चूहे बने हैं व दोनों हाथों पर दो छिपकलियां बनी हुई हैं। यह जिनबिम्ब अनूठा व दुर्लभ है।
गुफा दो में 35 फीट ऊँची भगवान आदिनाथ जी की एक पाषाण प्रतिमा उकेरी गई है; जो खंडित थी, किन्तु अब अपने पूर्ण रूप में है। मूर्ति के अधोभाग में 6 खड्गासन प्रतिमायें व इनके नीचे 5 पद्मासन प्रतिमायें भी उत्कीर्ण हैं। प्रतिमा के दायीं ओर 16 फीट ऊँची कायोत्सर्ग मुद्रा में तीर्थंकर मूर्ति भी चट्टान में उकेरी गई हैं। बड़ी प्रतिमा के चरणों के पार्श्व भागों में हाथियों पर खड़े चमरधारी इन्द्र भगवान की सेवा में लीन हैं। __गुफा नं. 3 में श्रेयांसनाथ भगवान की 16 फीट ऊँची 16वीं शताब्दी में निर्मित प्रतिमा स्थापित है। दो और प्रतिमायें 8-8 फीट ऊँची है। यहीं सं. 1717 में स्थापित शिलाखंडो पर चरण भी उत्कीर्ण हैं। . गुफा नं. 4 तीसरी गुफा के ऊपर है। 16वीं सदी की इस गुफा में तीन तीर्थंकर प्रतिमायें उत्कीर्ण है। ये सभी प्रतिमायें पद्मासन मुद्रा में है व लगभग 3.5 फीट ऊँची है। मध्य की प्रतिमा के दोनों ओर भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमायें बनी है। इनके दोनों ओर धरणेन्द्र-पद्मावती की प्रतिमायें उत्कीर्ण हैं। ये प्रतिमायें फणावली सहित हैं।
गुफा नं 5 में दो जिन-प्रतिमायें है। इनमें से एक तीर्थंकर प्रतिमा है; किन्तु दूसरी प्रतिमा खड्गासन में भगवान बाहुबली की है। जो प्रथम गुफा में स्थित भगवान बाहुबली की प्रतिमा के ही सदृश्य है।
गुफा नं. 6 पर्वत स्थित अंतिम गुफा है। यह गुफा (कंदरा) सबसे प्राचीन है व इसके मूर्तिलेखों में सं. 1283 साफ पढ़ा जा सकता है। इस गुफा में तीर्थंकर प्रतिमायें व तीन यक्ष प्रतिमायें हैं। एक प्रतिमा यक्षिणी अम्बिका देवी की है। जिसकी गोद में एक बालक ऊँगली पकड़े खड़ा है। तीर्थंकर प्रतिमाओं में एक प्रतिमा खड्गासन मुद्रा में व शेष पद्मासन मुद्रा में विराजमान है।
मध्य-भारत के जैन तीर्व- 151