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चौक में चारों दिशाओं में 12 वेदियां बनी हुई हैं; व सभी वेदियां प्राचीन हैं व इन वेदिओं पर कांच की सुंदर चित्रकारी की गई है। अनेक वेदिओं पर 10वीं से 15वीं सदी तक की प्रतिमायें विराजमान हैं। कुछ प्रतिमाओं को छोड़ सभी प्रतिमायें पद्मासन मुद्रा में आसीन है। कुछ बलुआ पत्थर से बनी प्रतिमा जी हैं; किन्तु अधिकांश प्रतिमायें संगमरमर से या बेसाल्ट पत्थर से निर्मित हैं। इसी भाग में एक छोटा मानस्तंभ भी 7-8 फीट ऊँचा स्थित है।
इसके पश्चात हम तीसरे आंगन (चौक) में एक छोटे से दरवाजे से होकर प्रवेश करते हैं। यहीं इसी चौक में विश्वप्रसिद्ध चौबीसी स्थित है। इस चौक में चारों ओर 24 जिनालय बने हुये हैं; जो सभी शिखर सहित हैं। ये शिखर दूर से देखने पर इस महान तीर्थ की याद दिलाते हैं। प्रथम दिशा में चार, द्वितीय दिशा में आठ, तृतीय दिशा में सात व अंतिम दिशा में पांच वेदियां बनी हुई है। इन्हीं वेदियों पर प्रथम से अंतिम तीर्थंकर तक की जिन-प्रतिमायें क्रमशः विराजमान हैं। इन जिन-प्रतिमाओं की ऊँचाई में थोड़ी सी भिन्नता देखने को मिलती है। ये सभी जिनबिम्ब लगभग 3 फीट से 4 फीट ऊँचाई वाले हैं। वीतरागी मुद्रा लिये ये जिनबिम्ब अतिमनोज्ञ व मन को शान्ति प्रदान करने वाले हैं। सभी जिन-प्रतिमायें पद्मासन मुद्रा में विराजमान हैं। इन मूर्तियों का वर्ण शास्त्रोक्त है। अर्थात् शास्त्रों में जिस तीर्थंकर का जो वर्ण बताया गया है; उन तीर्थंकरों के ये जिनबिम्ब उसी वर्ण के हैं। अर्थात् 16 स्वर्ण वर्ण के, 2 श्वेत वर्ण के, 2 श्याम वर्ण के, 2 हरित वर्ण के व 2 रक्त वर्ण के हैं। इन सभी जिन-प्रतिमाओं की रचना शैली समान है। इनकी कला अनुपम है। ऐसी सुंदर व शास्त्रोक्त चौबीस तीर्थंकरों की प्रतिमायें अन्यत्र देखने को नहीं मिलती हैं।
इस विश्वप्रसिद्ध चौबीसी का निर्माण संधाधिपति सवाईसिंह वजगोत्रीय खंडेलवाल ने करवाया था; जिनकी पत्नी का नाम कमला था। इन सभी प्रतिमाओं की प्राणप्रतिष्ठा फाल्गुन कृष्णा 11, सं. 1893 को सोनागिर के भट्टारक श्री चन्द्रभूषण जी प्रतिष्ठाचार्य ने करवाई थी। इस चौबीसी चौक में ही महावीर स्वामी के गर्भगृह के बगल में एक गंधकुटी बनी हुई है, जिसके नीचे 8, मध्य में 4, ऊपर 4 व शीर्ष में 4 कलिकायें बनी हैं। इस प्रकार कुल 20 कलिकायें निर्मित हैं। संभवतः इन पर विद्यमान विदेह क्षेत्र के 20 तीर्थंकरों को विराजमान करने की योजना रही हो। पर आज ये जीर्ण हालत में है। इसी चौक के मध्य में एक स्तंभ है। शायद एक प्रकाश स्तंभ हो या फिर मानस्तंभ बनाने की कोई योजना रही हो।
3. खंदार जी- ये प्राकृतिक अकृत्रिम जिनालय चंदेरी किला एवं कटीघाटी के मध्य में स्थित पहाड़ी पर स्थित हैं व चौबीसी से लगभग 1.5 किलोमीटर दूरी पर . स्थित है। इस पहाड़ी की गुफाओं में (पहाड़ी की चट्टानों में ही) तीर्थंकर मूर्तियां उकेरी गईं हैं। यहाँ 1132, 1717 व 1718 के शिलालेख भी हैं। तलहटी में एक मानस्तंभ, कुआं, धर्मशाला आदि है। यहाँ 6 मंदिर हैं।
गुफा एक में सीढ़ियों से होकर एक छोटे से दरवाजे में प्रवेश करते हैं। गुफा 150 - मध्य भारत के जैन तीर्थ