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22. शान्तिनाथ जिनालय- इस क्षेत्र पर 16वें तीर्थंकर भगवान शान्तिनाथ जी का यह तीसरा जिनालय है; जिसमें भगवान शान्तिनाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा में लगभग 8 फीट ऊँची प्रतिमा प्रतिष्ठित है। इसकी प्रतिष्ठा चंदेरी वाले चौ. रामचन्द्र जी ने सं. 1923 में ही कराई थी। प्रतिमा के ऊपर पार्श्व भागों में दो पद्मासन प्रतिमायें भी उत्कीर्ण हैं। नीचे चामर लिये इन्द्र खड़े हैं। लगभग 2 फीट ऊँची एक अन्य प्रतिमा भी इस जिनालय में विराजमान है।
23. वर्धमान जिनालय- यह एक नवनिर्मित जिनालय है। इस जिनालय में भगवान महावीर स्वामी की पद्मासन प्रतिमा अन्य चार प्रतिमाओं के साथ विराजमान है।
24. पार्श्वनाथ जिनालय- इस जिनालय में कायोत्सर्ग मुद्रा में लगभग 6.5 फीट अवगाहना की भगवान पार्श्वनाथ की फणावली युक्त प्रतिमा प्रतिष्ठित है। ऊपर के पार्श्व भागों में दो पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमायें भी उत्कीर्ण हैं। इस क्षेत्र पर सर्वाधिक प्रतिमायें भगवान पार्श्वनाथ की ही हैं।
25. महावीर जिनालय- इस जिनालय में अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी मूलनायक के रूप में विराजमान हैं। इस क्षेत्र पर महावीर स्वामी का यह चौथा जिनालय है।
26. ऋषभदेव जिनालय- 15वें जिनालय के बाद इस तीर्थ-क्षेत्र पर भगवान आदिनाथ जी के नाम पर यह दूसरा जिनालय है। इस जिनालय में भगवान ऋषभदेव की कायोत्सर्ग मुद्रा में 16 फीट ऊँची भव्य व आकर्षक प्रतिमा प्रतिष्ठित है। छत्र के दोनों ओर दो छोटी-छोटी तीर्थंकर प्रतिमायें भी मूल चट्टान में उत्कीर्ण है। नीचे चावरधारी व चरण चौकी पर दोनों ओर हाथी खड़े हैं। इसकी प्रतिष्ठा सं. 1873 में चंदेरी के चौबीसी निर्माता ने ही कराई थी।
___27. चन्द्रप्रभु जिनालय- इस जिनालय में भगवान चन्द्रप्रभु की प्रतिमा अन्य नवीन प्रतिमाओं के साथ आसीन है। यह नवीन जिनालय है।
28. मानस्तंभ- अंतिम जिनालयों के सम्मुख एक चबूतरे पर एक उत्तंग व मनोहारी मानस्तंभ बना हुआ है। इसका निर्माण वी.नि.सं. 2181 में हुआ था।
इस क्षेत्र पर तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिये धर्मशाला आदि भी बनी हुई हैं। इसका प्राचीन नाम तपोवन रहा होगा; जो बिगड़ते-बिगड़ते थोबन और फिर थूबौन में परिवर्तित हो गया।
148 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ