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ऊँची है। जिनालय का प्राचीन मंडप व गर्भगृह जीर्ण-शीर्ण हो जाने के कारण उसके स्थान पर नवनिर्मित सभा मंडप (विशाल हॉल) तैयार किया गया है, जिसमें एक साथ 4-5 हजार व्यक्ति बैठकर भजन पूजन का आनंद ले सकते हैं। इस प्रतिमा के दर्शन मात्र से मन को अपूर्व शान्ति मिलती है। गले में पड़े तीन बल अति सुंदर प्रतीत होते है। छाती पर श्री वत्स का चिह्न है; इसके दोनों ओर चामरधारी इन्द्र सेवा भाव से खड़े हैं। मूर्ति के दोनों ओर दो खड्गासन व दो पद्मासन प्रतिमायें भी उत्कीर्ण है; जो छोटी-छोटी हैं। चरण तल में श्रावक-श्राविकायें भक्ति भाव मुद्रा में आसीन हैं। यह प्रतिमा अतिशयकारी है।
16. अजितनाथ जिनालय- जैनधर्म के द्वितीय तीर्थंकर भगवान अजितनाथ का कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित यह जिनबिम्ब 16 फीट ऊँचा है। मुख से वीतरागता झलकती है व चेहरे पर मंद मुस्कान परिलक्षित होती है। ऊपर भाग में पद्मासन मुद्रा में दो छोटी-छोटी प्रतिमायें भी उत्कीर्ण हैं। अधोभाग के पार्श्व भागों में चामरधारी इन्द्र सेवा में खड़े हैं। नीच पादमूल में चार श्रावक भी श्रद्धावनत हैं। बायीं ओर दीवाल के सहारे तीसरे तीर्थंकर भगवान संभवनाथ की लगभग 7 फीट ऊँची प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में आसीन है। इसके ऊपरी पार्श्व भागों में दो पद्मासन मूर्तियों भी उत्कीर्ण है। अधोभाग के पार्श्व भागों में चामरधारी इन्द्र खड़े हैं। यह जिनालय भी सं. 1672 का निर्मित है। इसके प्रतिष्ठाचार्य धर्मकीर्ति भट्टारक थे।
17. अभिनंदन नाथ जिनालय- इस जिनालय में कायोत्सर्ग मुद्रा में चौथे तीर्थंकर भगवान संभवनाथ की 16 फीट ऊँची भव्य व अतिमनोज्ञ प्रतिमा विराजमान है। इस जिनालय की प्रतिष्ठा सं. 1708 में हुई थी। मूल प्रतिमा के ऊपर पार्श्व भागों पर दो पद्मासन मूर्तियां उत्कीर्ण है। नीचे चामर लिये इन्द्र खड़े हैं। शिखर में तीन ओर तीन जिनबिम्ब भी स्थापित हैं। दूसरे, तीसरे व चौथे तीर्थंकरों की प्रतिमायें विशाल व मनोज्ञ हैं। .. 18. अरहनाथ जिनालय- इस जिनालय में कायोत्सर्ग मुद्रा में लगभग 5 फीट ऊँची भगवान अरहनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठित है। इस जिनालय का निर्माण 1923 में अमरोद निवासी घेवनलाल मोदी ने कराया था। _____19. महावीर जिनालय- इस जिनालय में अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की 6.5 फीट ऊँची खड्गासन प्रतिमा स्थापित है। यह जिनालय भी सं. 1923 का बना है। चंदेरी की एक श्रद्धालु अमरोबाई ने इसका निर्माण कराया था।
20. चन्द्रप्रभु जिनालय- प्रतिमा के चरणों के नीचे पाद्मूल में चन्द्रमा चिह्न से अंकित यह प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में आठवें तीर्थंकर भगवान चन्द्रप्रभु की है। 8 फीट ऊँची भव्य व मनोहारी इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा सं. 1923 में हुई थी। ... 21. वर्धमान जिनालय- इस जिनालय में अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की कायोत्सर्ग मुद्रा में लगभग 8 फीट ऊँची भव्य प्रतिमा विराजमान है। इसका प्रतिष्ठाकाल भी सं. 1923 ही है। इस जिनालय में एक स्थान पर लगभग एक फीट की पद्मासन प्रतिमा भी विराजमान है।
मध्य-भारत के जैन तीर्थ - 147