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जिनालय क्र. 30- इस जिनालय के गर्भगृह में मध्य में पदमासन मुद्रा में 3 फीट ऊँची भगवान चन्द्रप्रभु की प्रतिमा विराजमान है। दोनों पार्श्व भागों में कायोत्सर्ग मुद्रा में एक ओर भगवान सुपार्श्वनाथ व दूसरी ओर संभवनाथ व पुष्पदन्त भगवान की प्रतिमायें स्थित हैं। इसमें सं. 1242 लिखा है, सभी खंडित हैं।
जिनालय क्र. 31- इस क्षेत्र का यह अंतिम जिनालय है, जिसमें चार-चार फीट ऊँचे तीन जिनबिम्ब स्थापित हैं। प्रतिमाओं के नीचे अंकित चिह्नों को पहचाना नहीं जा सकता। सभी प्रतिमायें खंडित है। अन्त के तीन जिनालयों को छोड़कर सभी जिनालयों के आगे दालान बनी हुई है। ___मंदिर परिसर में एक प्राचीन बावड़ी, क्षेत्र कार्यालय व छोटी-सी धर्मशाला भी स्थित है। इस क्षेत्र के विषय में अधिकारी विद्वानों द्वारा शोध कार्य द्वारा इसकी प्राचीनता तथा शैलीगत कलात्मक विशेषताओं को प्रमाणिक ढंग से प्रस्तुत किया जाना अति आवश्यक है। साथ ही इसके संरक्षण एवं विकास के लिये उचित योजनायें बनाकर समाचार-पत्रों व इलेक्ट्रोनिक मीडिया के माध्यम से प्रचारित प्रसारित किया जाकर धन संग्रह एकत्रित किया जाना चाहिये। इस कार्य में भारतवर्षीय श्री दिगम्बर जैन तीर्थ कमेटी, मुम्बई तथा अन्य केन्द्रीय संस्थाओं को ध्यान देने की विशेष आवश्यकता है।
वर्ष 2011 के अंत में जंगल वाले बाबा के नाम से प्रसिद्ध आचार्य श्री चिन्मय सागरजी के सान्निध्य में विशाल पंचकल्याणक महोत्सव का आयोजन किया गया; जिसमें एकत्रित राशि से क्षेत्र के विकास की योजनायें बनाई जा रही हैं।
गोलाकोट क्षेत्र में उपरोक्त पंचकल्याणक में प्रतिष्ठित भगवान श्री पार्श्वनाथ स्वामी की मूर्ति अनेकों प्रयास करने के बावजूद भी श्रावकों से मूल वेदी पर नहीं जा पा रही थी। तब जंगल वाले बाबा अपने आगे के गमन को छोड़ यहां वापिस आये। तभी मूर्ति को अपनी मूल जगह पर स्थापित किया जा सका। इस घटना को पारस चैनल पर अनेक बार प्रसारित किया गया।
142 - मध्य भारत के जैन तीर्थ