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जिनालय क्र. 23- इन जिनालय में एकमात्र जिनबिम्ब कायोत्सर्ग मुद्रा में विराजमान हैं। इस जिनबिम्ब की ऊँचाई लगभग 9 फीट होगी। जिनबिम्ब को
खंडित कर दिया गया है। • जिनालय क्र. 24- यह भव्य जिनालय भगवान चन्द्रप्रभु को समर्पित है। जिसमें 5 फीट ऊँची भगवान चन्द्रप्रभु की प्रतिमा मूलनायक के रूप में विराजमान है। बायीं ओर 4 फीट ऊँची कायोत्सर्ग मुद्रा में भगवान सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान हैं। दायीं ओर भी 4 फीट ऊँची कायोत्सर्ग मुद्रा में एक प्रतिमा विराजमान हैं, जिसमें चिह्न उत्कीर्ण नहीं है। सभी जिनबिम्ब एक ही प्रखर खंड में उकेरे गये हैं। शीर्ष भाग पर भगवान पार्श्वनाथ की छोटी सी प्रतिमा उत्कीर्ण हैं।
__ जिनालय क्र. 25- इस जिनालय की एक मूर्ति 10 वर्ष पूर्व चोरी चली गई, ऐसा क्षेत्र पर निवासरत पुजारी ने बताया। वर्तमान में इस कक्ष में बायीं ओर एक देवी प्रतिमा स्थापित है, जिसके शीर्ष पर जिनबिम्ब स्थापित है।
जिनालय क्र. 26- यह परिक्रमा-पथ का आखिरी जिनालय है। इन जिनालय में भगवान आदिनाथ, अजितनाथ व संभवनाथ के कायोत्सर्ग मुद्रा में जिनबिम्ब स्थापित हैं, जो सं. 1213 के प्रतिष्ठित हैं। मध्य में भगवान आदिनाथ की प्रतिमा 4 फीट ऊँची है जबकि अगल-बगल में स्थित भगवान अजितनाथ व संभवनाथ के जिनबिम्ब साढे तीन फीट ऊँचे है। इसी जिनालय में बायीं ओर दो अन्य जिनबिम्ब भी कायोत्सर्ग मुद्रा में विराजमान हैं जबकि दायीं ओर 16 जिनबिम्ब एक (एक प्रस्तर खंड में उत्कीण) भी विराजमान हैं।
जिनालय क्र. 27- प्रागंण के मध्य में 40 फीट ऊँचा शिखरबंद प्राचीन भव्य जिनालय है। जिसमें अनेक नवीन जिनबिम्ब स्थापित हैं। इसमें एक प्राचीन शिलालेख है। इस जिनालय की प्राचीन मूर्तियां जिनालय क्र. 16 में विराजमान कर दी गई हैं। इस जिनालय में भगवान नेमिनाथ की लगभग 6 इंच व 5 इंच ऊँची प्राचीन प्रतिमायें भी रखी हैं जो महुआ ग्राम से लाई गई हैं।
जिनालय क्र. 28- मंदिर प्रागंण के आंगन में अन्त में जिनालय क्र. 21 के सामने एक प्राचीन मानस्तंभ बना है। जिसके ऊपर चारों ओर जिनप्रतिमायें विराजमान है। इसी के पास सं. 1345 का एक शिलालेख लगा है।
जिनालय क्र. 29- मूल मंदिर प्रांगण के बाहर तीन जिनालय बाहर के चबूतरे के दायीं ओर स्थित हैं। इस जिनालय के गर्भगृह में तीन जिन-प्रतिमायें कायोत्सर्ग मुद्रा में विराजमान हैं। ये जिन-प्रतिमायें 4 से साढ़े चार फीट ऊँची हैं। सभी खंडित हैं।
मध्य-भारत के जैन तीर्थ- 141