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किये गये हैं। मध्य का जिनबिम्ब पदमासन में व अगल-बगल के छः-छः जिनबिम्ब कायोत्सर्ग मुद्रा हैं, किन्तु छोटे-छोटे हैं।
जिनालय क्र. 20- यह इस क्षेत्र का एक प्राचीन जिनालय है, जिसमें सं. 1124 में प्रतिष्ठित जिनबिम्ब विराजमान हैं। मध्य में नंदीश्वर द्वीप की रचना एक चौकोर शिलाखंड में उत्कीर्ण की गयी है। प्रत्येक दिशा में 13-13 जिनबिम्ब उत्कीर्ण किये गये हैं। इनमें से 12 जिनबिम्ब कायोत्सर्ग मुद्रा में व नीचे उत्कीर्ण जिनबिम्ब पदमासन मुद्रा में हैं। सभी जिनबिम्ब छोटे-छोटे हैं। इसके दायीं व बायीं ओर चार-चार फीट ऊँचे दो अन्य जिनबिम्ब स्थापित हैं, दायीं ओर के जिनबिम्ब पर 12 अन्य छोटी-छोटी जिनबिम्ब की आकृतियां उकेरी गयीं हैं। तीन अन्य रखे शिलाखंडों पर भी क्रमशः तीन-तीन व दो जिनबिम्ब उत्कीर्ण हैं, जो छोटे-छोटे हैं। सभी मूर्तियां चिह्न रहित हैं।
जिनालय क्र. 21- यह भगवान शान्तिनाथ जिनालय हैं, जिसमें सभी प्रतिमायें कायोत्सर्ग मुद्रा में आसीन हैं। यह भव्य व ऊँचा जिनालय है। इस जिनालय के गर्भगृह में मध्य में भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा मूलनायक के रूप में विराजमान हैं। यह प्रतिमा 11 फीट ऊँची है। यह प्रतिमा पूज्यनीय व पूर्णरूपेण ठीक है। इसके दायीं बायीं ओर स्थित जिन-प्रतिमायें लगभग सात-सात फीट ऊँची हैं, किन्तु खंडित अवस्था में है। यहां प्रतिमा के नीचे साऊसाहुल नाम लिखा है। इसी जिनालय में एक अन्य तीन फीट ऊँचा कायोत्सर्ग मुद्रा में जिनबिम्ब भी विराजमान हैं। दो अन्य प्रस्तरों पर चार खड्गासन व दो पदमासन छोटे-छोटे जिनबिम्ब भी बने हुये हैं।
जिनालय क्र. 22- यह क्षेत्र के सबसे विशाल कक्ष रूप में स्थित जिनालय हैं। इस जिनालय के बाहर तीन से पांच फीट ऊँची कायोत्सर्ग मुद्रा में छः प्रतिमायें खंडित अवस्था में रखीं हैं। यह विशाल जिनालय लगभग 12 फीट ऊँचा है। इस जिनालय में सर्वाधिक संख्या में जिनबिम्ब स्थापित किये गये हैं। मध्य में भगवान ऋषभनाथ की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा काफी भव्य व आकर्षक है। ऊँचाई लगभग 6 फीट है। इस जिनबिम्ब के बायीं
ओर 10 जिनबिम्ब स्थापित हैं, जो सभी 3 से 5 फीट ऊँचे हैं, व कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं। दायीं ओर छः जिनबिम्ब कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित है। अधिकांश प्रतिमाओं के पादमूल में कोई प्रतीक चिह्न न होने से यह जिनालय इस क्षेत्र का सबसे पुराना जिनालय प्रतीत होता है। इन जिनालय की लगभग सभी प्रतिमायें खंडित कर दी गयी हैं। प्रतिमायें अधिकांश हाथों से खंडित हैं। जिनबिम्ब अतिमनोज्ञ व मनोहारी है। 140 - मय-भारत के जैन तीर्थ