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गर्भगृह में एक ही पाषाण शिला में सुंदर जालियां, जैन शासन के देवी-देवताओं व यक्ष-यक्षणिओं को अगल-बगल में हाथियों के साथ उत्कीर्ण किया गया है, वहीं उसी पाषाण शिला में कमलासन की रचना कर उस पर पदमासन मुद्रा में भगवान आदिनाथ की जिन - प्रतिमा को उत्कीर्ण किया गया है, जो अतिभव्य व सुंदर है । इस प्रतिमा के दायें व बायें खड्गासन मुद्रा में दूसरे व तीसरे तीर्थंकर भगवान अजितनाथ व संभवनाथ की प्रतिमाओं को उत्कीर्ण किया गया है । ये प्रतिमायें क्रमशः 3.5, 2.5 व 2.5 फीट ऊँची हैं, जिन पर हीरे की पोलिश की चमक आज भी यथावत विद्यमान है ।
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प्रत्येक जिन - प्रतिमा के शीर्ष पर रखे पृथक शिलाखंड में पांच-पांच छोटी-छोटी जिन - प्रतिमायें भी उत्कीर्ण की गई हैं। सभी प्रतिमायें खंडित है 1
जिनालय क्र. 6- छठे जिनालय में गर्भगृह में तीन योगमुद्रा में आसीन प्रतिमायें विराजमान है। मध्य में भगवान शान्तिनाथ, बायीं ओर भगवान अजितनाथ व दायीं ओर भगवान अभिनंदन नाथ की प्रतिमायें प्रतिष्ठित है । सभी प्रतिमायें मूर्ति-भंजकों द्वारा खंडित कर दी गई हैं । किन्तु इन जिन-प्रतिमाओं के शीर्ष भाग पर रखे 1.5 व 6 फीट के शिलाखंड में 9 मूर्तियां उत्कीर्ण हैं, जो छोटी-छोटी पर अखंडित हैं । इनमें से मध्य की प्रतिमा पद्मासन व बाजू की प्रतिमायें खड्गासन मुद्रा में हैं ।
जिनालय क्र. 7 - इस जिनालय में उपरोक्त जिनालय क्रमांक 6 की भांति ही दो जिन - प्रतिमायें योगमुद्रा में हैं व सभी खंडित हैं । एक प्रतिमा पर निर्माण काल सं. 1231 लिखा है । मध्य में पद्मासन में 3.5 फीट ऊँची भगवान ऋषभनाथ की प्रतिमा है। जबकि बायीं ओर 2.5 फीट ऊँची भगवान अजितनाथ की व दायीं ओर 2.5 फीट ऊँची भगवान धर्मनाथ की प्रतिमा स्थापित है।
जिनालय क्र. 8- जिनालय में तीन जिन - प्रतिमायें विराजमान हैं। मध्य में अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की 5 फीट ऊँची व दायें-बायें 4-4 फीट ऊँची भगवान धर्मनाथ व पदमप्रभु की प्रतिमायें विराजमान हैं। सभी प्रतिमायें खंडित हैं और सं. 1231 में प्रतिष्ठित की गई थीं। सभी प्रतिमायें अतिमनोज्ञ व अतिशय आभा युक्त हैं 1
जिनालय क्र. 9- इन जिनालय में चार तीर्थंकर प्रतिमायें स्थापित हैं । मध्य में 5 फीट ऊँची भगवान ऋषभनाथ की प्रतिमा है जबकि इसके दायीं व बायीं . ओर भगवान अजितनाथ व संभवनाथ की प्रतिमायें विराजमान हैं । दायीं ओर एक और जिन - प्रतिमा भगवान मुनिसुव्रतनाथ की है। ये सभी जिनबिम्ब
मध्य-भारत के जैन तीर्थ ■ 137