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पचराई यह अतिशय तीर्थ-क्षेत्र चौरासी क्षेत्र का दूसरा महत्वपूर्ण तीर्थ-क्षेत्र है। यह शिवपुरी जिले की खनियाधाना तहसील मुख्यालय से 18 किलोमीटर, कदवाया (ईसागढ) से 10 किलोमीटर व रन्नोद (शिवपुरी) से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां उक्त सभी स्थानों से सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। यह पक्के सड़क मार्ग पर स्थित है, जो खनियाधाना से अशोकनगर ईसागढ़ को जाता है। यह तीर्थ-क्षेत्र एक सुरम्य पठारी मार्ग पर स्थित है, जिसके पास घने वन क्षेत्र हैं।
इस तीर्थ-क्षेत्र पर 32 जगह दर्शन हैं, व एक परकोटे के अंदर ही लगभग 28 जिनालय एक परिक्रमा-पथ पर स्थित हैं। मुख्य जिनालय मध्य में स्थित है। ये सभी जिनालय शिखर युक्त हैं। परिक्रमा-पथ के बाहर पहले चार जिनालय थे, किन्तु कुछ समय पूर्व बाहर के चबूतरे के बायीं ओर का जिनालय अब नहीं है। दायीं ओर तीन जिनालय स्थित हैं। सभी जिनालय नीचे से ऊपर तक बलुआ पत्थर से निर्मित हैं व अधिकांश जिनालय 6-7 फीट ऊँचे हैं। कुछ बाद के जिनालयों की ऊँचाई 10 से 12 फीट के बीच है। इस ऊँचाई में शिखरों की ऊँचाई शामिल नहीं है।
यहां स्थित जिनालयों के अंदर विराजमान अधिकांश जिन-प्रतिमायें आताताईयों द्वारा खण्डित कर दी गई हैं। अधिकांश प्रतिमायें हीरे की पोलिश के कारण चमकदार हैं, व लाल रंग के बलुआ पत्थर से निर्मित हैं। कुछ प्रतिमायें भूरे रंग के बलुआ पत्थर से भी निर्मित हैं। अधिकांश जिनालयों के द्वार व उनके बाहर की दीवारों की कलात्मकता देखते ही बनती है, जिनमें जिनशासन के देवी-देवताओं के साथ यक्ष-यक्षणियां, हाथी व सिंह की स्नेहमयी कलाकृतियां प्रमुखता से उत्कीर्ण की गई हैं। प्रत्येक जिनालय के द्वार के शीर्ष-भाग पर भी छोटी-छोटी जिन-प्रतिमायें उत्कीर्ण की गई हैं। अंदर गर्भगृहों में अतिमनोज्ञ एक ही पत्थर में उत्कीर्ण अनेक जिनबिम्ब व उनके यक्ष-यक्षणियों की मूर्तियां स्थापित हैं।
- यह तीर्थ-क्षेत्र मध्ययुगीन है। यहाँ सं. 1122 से लेकर सं. 1345 तक के समय में प्रतिष्ठित जिन-प्रतिमायें तो हैं ही, अनेक जिन-प्रतिमायें ऐसी भी हैं, जिन पर निर्माण तिथि अंकित नहीं है। परिसर के बाहर कुछ टीले हैं, जिनमें निश्चित कुछ जिनालय भूगर्भ में होने की संभावना है। इस क्षेत्र की प्राचीनता निम्न शिलालेख से स्पष्ट है
134 - मध्य भारत के जैन तीर्थ