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________________ देखने को मिलता है; यहीं बिना शिखर के दो जैन मंदिर प्राचीन कोठरी या दालाननुमा जगह पर स्थित हैं। आज से लगभग 85 वर्ष पूर्व प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार यहाँ 145 पूज्यनीय प्रतिमायें थीं व शताधिक की संख्या में खंडित प्रतिमायें भी थीं। वर्तमान में इन जिनालयों में लगभग 120 मूर्तियां हैं। इन मूर्तियों पर सं. 1000 से 1200 तक के लेख खुदे हुये हैं । कुछ मूर्तियों पर प्रशस्ति व संवत् भी अंकित नहीं है जिससे ये इसके पूर्व की प्रतीत होती हैं । 1. यहाँ स्थित बड़े जिनालय में वर्तमान में दो कमरों में ये प्रतिमायें रखी हुईं है। अंदर के गर्भगृह में भगवान आदिनाथ, अजितनाथ व संभवनाथ की मनोज्ञ पद्मासन प्रतिमायें विराजमान हैं। ये सभी प्रतिमायें देशी पाषाण से निर्मित 4 से 6 फीट ऊँची हैं। इसी गर्भगृह में 16 अन्य जिनबिम्ब भी विराजमान हैं। ये कुछ पद्मासन व कुछ खड्गासन मुद्रा में हैं। मूर्तियों के परिकर में छत्र, भामंडल, इन्द्रदेव, चमरधारी देव व देवियां उत्कीर्ण हैं। इन प्रतिमाओं में से 8 खड्गासन प्रतिमाओं के सिर विगत वर्षों में काट लिये गये थे । कुल 22 जिन - प्रतिमाओं के सिर यहाँ से निकाले गये थे; जो बाद में बरामद कर लिये गये । बाह्य कक्ष में रखी अधिकांश प्रतिमायें खण्डित कर दी गई है। 2. परिसर के अंदर ही एक छोटा जिनालय स्थित है; जिसमें एक बड़ी खंडित व दो छोटी पूज्यनीय मूर्तियां विराजमान हैं यह जिनालय अब खंडहर में बदल चुका है । समीप ही एक नये जिनालय में नवनिर्मित भगवान पार्श्वनाथ की भव्य मनोहारी पद्मासन प्रतिमा स्थापित की गई है। इस वेदिका पर कुछ और भी प्रतिमायें विराजमान है। आज से लगभग 50 वर्ष पूर्व की बात है । खनियाधाना जैन समाज के नवयुवक कार्यकर्ता श्री दयाचन्द्र जी देखो वाले, निर्मल कुमार जी देदामूरी, कपूरचन्द्र जी बाजार वाले एवं हजारी लाल जी मोदी ने एक संक्षिप्त सूचना पर अपने जानमाल की परवाह किये बगैर यहाँ के मूर्ति-भंजकों को रंगे हाथों पकड़कर पुलिस के सुपुर्द किया था और पुलिस ने अभियुक्त रामगोपाल गोबर्धन दिल्ली के बयानों के आधार पर मोहनजोदड़ो फर्म के शिवचंद बात्रा सुंदरनगर की दुकान पर छापा मारकर 95 मूर्तियों के सिर तथा अन्य पुरातात्विक सामग्री बरामद की थी । यहाँ की अधिकांश मूर्तियों पर प्रशस्तियां नहीं लिखी हैं; जो इस बात का प्रतीक हैं कि ये मूर्तियां उस काल की हैं; जब मूर्तियों के नीचे प्रशस्ति लिखने की परंपरा नहीं थी । लगभग 85 वर्ष पूर्व की रिर्पोट में यह भी कहा गया है कि किंवदंतिओं से पता चलता है कि पहले यहाँ गोलाकोट नाम का प्राचीन शहर था; जहाँ 700 जैन परिवार तो केवल देदामूरी गोत्र के ही निवासरत थे । गोलाकोट में हजारों खंडहर बने टीले, प्राचीन बावड़ियां, परकोटे के चिह्न व किले के अवशेष भी स्थित हैं। समाज को इस तीर्थ क्षेत्र के पुनरुद्वार के प्रयास करना चाहिये । 132 ■ मध्य-भारत के जैन तीर्थ
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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