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________________ त्रिपुरी जबलपुर से पश्चिम में 9 किलोमीटर दूर एक गांव है, यहाँ कलचरियों का शासन रहा है। यह चेदि गणराज्य की राजधानी रही है। 9वीं से 11वीं शताब्दी तक यह राजनीति का प्रमुख केन्द्र बिंदु थीं। कलचुर शासक गागेयदेव के शासन काल में यहाँ का विकास अपने चरम पर था। इनके सोने-चांदी व तांबे के सिक्के प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं। कुम्हीं में प्राप्त एक ताम्रलेख के अनुसार गागेयदेव की मृत्यु 150 पत्नियों के साथ प्रयाग के अक्षयवट के नीचे हुई थी। उसका पुत्र लक्ष्मीकर्ण (कर्ण) था जिसने अपने पिता का श्राद्ध तर्पण सन् 1041 में किया था। यहाँ प्रचुर मात्रा में तीर्थंकर प्रतिमायें व यक्ष-यक्षिणीओं की मूर्तियां मिली थी। सैंकड़ों जैन पुरावशेष सड़कों, पुलों, निजी मकानों व मंदिरों में लगा दिये गये हैं। गांव के सरोवर के मध्य बने मंदिर में नेमिनाथ भगवान की यक्षिणी देवी अम्बिका पुत्र सहित यहाँ विराजमान हैं। ____ यहाँ की एक जैन प्रतिमा हनुमानताल के प्रसिद्ध दिगंबर जैन पार्श्वनाथ जिनालय में विराजमान है। यह कलचुरिकाल की प्रतिनिधि रचना है। यह 5 फीट ऊँची पद्मासन मुद्रा में है। जिसकी दृष्टि नाशाग्र है। प्रतिमा के परिकर में छत्र, भामंडल, हाथी, मालाधारी देव-देवी, गंधर्व बाला, सौधर्म ईशान इन्द्र व इन्द्राणी आदि उत्कीर्ण हैं। पाद्मूल में प्रतीक चिह्न कमल बना है। यहाँ की मूर्तियां जबलपुर, नागपुर व रायपुर के संग्रहालयों में रखी हैं। 130 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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