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________________ यहाँ विघ्न- विनाशक के नाम से जानी जाती है। इस प्रतिमा के सिर पर सप्तफणी नागों का छत्र बना है। प्रशस्ति वाले भाग पर प्रतीक चिह्न सर्प की जगह कमल सदृश्य प्रतीत होता है। 2 फीट ऊँची दो पद्मासन प्रतिमायें व लगभग इतनी ही अवगाहना की दो कायोत्सर्ग मुद्रा की प्रतिमायें भी वेदिका पर आसीन हैं। अन्य अनेक और भी तीर्थंकर प्रतिमायें वेदिका पर विराजमान हैं। यहाँ के दर्शन कर मन को असीम शान्ति मिलती है। यहाँ आकर श्रद्धालु अपनी मनोकामना की पूर्ति हेतु विनम्र प्रार्थना भी करते हैं मूलनायक प्रतिमा की प्रतिष्ठा सं. 1863 में हुई थी। इस वेदिका पर कलचुरीकालीन प्रतिमायें भी विराजमान हैं। एक शिलाफलक में लगभग 2.7 फीट ऊँची भगवान महावीर स्वामी की कायोत्सर्ग मुद्रा में प्रतिमा भी इस वेदिका पर है। जिसके शिरो भाग के दोनों ओर गंधर्व पुष्प वर्षा के लिये उद्यत हैं। दोनों ओर चमरधारी इन्द्र खडे हैं। लगभग 2.25 फीट ऊँची भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा भी इस वेदिका पर विराजमान है। 7. जीना चढ़कर जाने पर एक कक्ष में एक देशी पाषाण स्तंभ पर चारों ओर चौबीस तीर्थंकर भगवंतों की प्रतिमायें उत्कीर्ण हैं। प्रत्येक दिशा में 6-6 तीर्थंकर प्रतिमायें बनी है। यह रचना अतिप्राचीन है तथा अपने आप में अद्भुत है। ऐसी चौबीसी अन्यत्र देखने को नहीं मिलती। इसे सर्वतोभद्र रचना कहते हैं। इस रचना को आधार नीचे के तल से दिया गया है। 8. नंदीश्वर जिनालय- यह नंदीश्वर की रचना अतिप्राचीन है। ऐसी रचना अन्यत्र देखने को नहीं मिलती। रचना लाल प्रस्तर खंड पर उकेरी गई है। जिनालय भग्नहाल में अपूर्ण है। इस रचना में चार मेरु चारों दिशाओं में, दो विदिशाओं में व एक मेरु मध्य में बना है। संपूर्ण रचना कमल पुष्प पर स्थित है। यह रचना चार स्तंभों पर आधारित एक वेदी मंडप के नीचे बनी है। मध्य के मेरु में 20 प्रतिमायें उत्कीर्ण हैं। चार दिशाओं में स्थित मेरुओं में भी 20-20 तीर्थंकर प्रतिमायें उत्कीर्ण हैं। यह रचना ऐतिहासिक महत्व की है। 9. भगवान आदिनाथ जिनालय- इस जिनालय में भगवान आदिनाथ की पीत वर्ण की पदमासन प्रतिमा विराजमान है; जिसकी अवगाहना 3.5 फीट है। इसी वेदिका पर भगवान पार्श्वनाथ व वज्रदंड चिह्न युक्त भगवान धर्मनाथ की प्रतिमायें भी विराजमान है। ___10. अजितनाथ जिनालय- यहाँ मूलनायक के रूप में भगवान अजितनाथ जी विराजमान हैं। इसी जिनालय में भगवान शान्तिनाथ एवं कुंथुनाथ की लगभग 4 फीट अवगाहना वाली प्रतिमायें भी योगमुद्रा में प्रतिष्ठापित की गई हैं। ये प्रतिमायें काफी प्राचीन हैं। भगवान पार्श्वनाथ की पद्मासन प्रतिमा भी इस वेदिका पर विराजमान है। दायीं ओर पद्मासन मुद्रा में अष्टम तीर्थंकर भगवान चन्द्रप्रभु की अतिमनोज्ञ प्रतिमा भी वेदिका पर विराजमान है। आश्चर्यजनक रूप में इस प्रतिमा के पाद्मूल में स्थित चन्द्रमा उल्टा अंकित हैं; ऐसा अन्यत्र कहीं भी देखने को नहीं मिलता। यहां प्रतिवर्ष जनवरी में विशाल मेला भी लगता है। . मध्य-भारत के जैन तीर्थ - 129
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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