________________
1
इस तीर्थ क्षेत्र पर 10 जिनालय हैं; जो एक विशाल परिसर में स्थित हैं । 1. महावीर जिनालय - यह जिनालय क्षेत्र के प्रमुख द्वार के सामने स्थित है इस जिनालय में मूलनायक के रूप में भगवान महावीर स्वामी की 3 फीट ऊँची भव्य व मनोज्ञ प्रतिमा विराजमान हैं। इसी वेदिका पर कायोत्सर्ग मुद्रा में 3 फीट ऊँची भगवान सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा भी विराजमान है। वेदिका पर एक दर्जन से अधिक अन्य तीर्थंकर प्रतिमायें भी विराजमान हैं। मूर्तियां मध्यकालीन प्रतीत होती हैं ।
2. इस जिनालय में भगवान ऋषभनाथ व उनके दो पुत्रों भरत व बाहुबली की कायोत्सर्ग मुद्रा में नवीन प्रतिमायें विराजमान हैं। ये प्रतिमायें 8 से 10 फीट ऊँची कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं ।
3. बाहुबली जिनालय - इस जिनालय में लगभग 5 फीट ऊँची भगवान बाहुबली स्वामी की कायोत्सर्ग मुद्रा में प्रतिमा विराजमान है । यह जिनालय भी नवीन है ।
4. पार्श्वनाथ जिनालय - इस जिनालय में भगवान पार्श्वनाथ की दो पद्मासन व एक खड्गासन मुद्रा में प्रतिमायें विराजमान हैं; जिनकी प्रत्येक की अवगाहना लगभग 1.5 फीट की है। वेदिका पर 4 अन्य प्रतिमायें भी विराजमान हैं। ये सभी तीर्थंकर प्रतिमायें हैं। वेदिका के बाहर एक आले में अति प्राचीन, अत्यन्त सुंदर, कलापूर्ण पद्मावती - पार्श्वनाथ की मूर्ति विराजमान है ।
5. सहस्रकूट चैत्यालय - यह सहस्रकूट चैत्यालय अष्टकोणीय अतिप्राचीन है; जिसके मध्य में एक मेरु स्थापित है। इसमें तीन कटनियां हैं। वर्तमान में इस चैत्यालय में 1008 जिन - प्रतिमायें उत्कीर्ण हैं । नीचे की कटनी में चारों दिशाओं व विदिशाओं में 408 जिन - प्रतिमायें उत्कीर्ण हैं। मध्य की कटनी में भी उपरोक्तानुसार 360 जिन - प्रतिमायें उत्कीर्ण हैं। तृतीय कटनी में आठों दिशाओं में कुल 120 जिन - प्रतिमायें उत्कीर्ण हैं । इस चैत्यालय में पांच मेरु भी है । ऊपर का मेरु 2 फीट 2 इंच, चारों दिशाओं के मेरु 1 फीट 8 इंच' से 1 फीट 11 इंच के बीच की ऊँचाई वाले व पूर्व दिशा का एक मेरु 8 फीट ऊँचा है। इन मेरुओं पर भी 120 प्रतिमायें उत्कीर्ण हैं । इस प्रकार तीर्थंकर प्रतिमाओं का कुल योग 1008 हो जाता है । इसीलियें इन्हें सहस्रकूट चैत्यालय कहते हैं ।
1
बानपुर, पटनागंज में भी प्राचीन सहस्रकूट चैत्यालय है; किन्तु यह चैत्यालय इन सबसे अलग है। यह 10वीं शताब्दी में निर्मित प्रतीत होता है। आदि पुराण व अन्य पुराणों में इन्द्रों द्वारा भगवान के 1008 नाम लेकर पूजा की जाती थी । संभवतः इसी कारण से इन चैत्यालयों की रचना प्रारंभ की गई होगी। यह चैत्यालय लगभग 7 फीट से 9 फीट व्यास में स्थित है । यहीं एक स्थान पर प्राचीन चरण भी अंकित है; जो इस बात के प्रतीक हैं, कि ये क्षेत्र कभी तपोभूमि रहा है ।
6. अतिशयकारी भगवान पार्श्वनाथ जिनालय - इस जिनालय में मूलनायक के रूप में लगभग 4 फीट ऊँची भव्य, चित्ताकर्षक व प्रभावोत्पादक भगवान पार्श्वनाथ की धवल प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में विराजमान है। यह प्रतिमा
128 ■ मध्य-भारत के जैन तीर्थ