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________________ भागों की भगवान कुंथुनाथ व अरहनाथ की प्रतिमायें कायोत्सर्ग मुद्रा में आसीन हैं। तीनों प्रतिमायें अतिप्राचीन हैं। तीनों प्रतिमाओं की अवगाहना लगभग समान हैं। तीर्थंकर मूर्तियों की शान्त वीतराग मुद्रा देखते ही बनती है। क्षेत्र पर दर्शन से अपूर्व शान्ति मिलती है। इस जिनालय में उक्त तीन देशी पाषाण से निर्मित प्रतिमाओं के अतिरिक्त अनेक प्रतिमायें और भी वेदिका पर विराजमान है; जिनमें से कुछ प्राचीन पाषाण से निर्मित, कुछ संगमरमर से निर्मित व शेष धातु निर्मित प्रतिमायें हैं। उक्त तीन तीर्थंकर प्रतिमाओं के ऊपर पाषाण निर्मित छत्र भी बने हैं। मुख के चारों ओर भामंडल व पार्श्व भागों में जैन शासन देवी-देवताओं की मूर्तियां भी उत्कीर्ण हैं। क्षेत्र के आसपास प्राचीन बावड़ी, शैलचित्र आदि अन्य प्रमुख दर्शनीय चीजें हैं। कभी यह क्षेत्र समृद्ध रहा होगा। ऐसा यहाँ बिखरे खंडहरों से प्रतीत होता है। यात्रियों को सागर-छतरपुर मार्ग से गुजरते समय इस क्षेत्र के दर्शन अवश्य करना चाहिये। क्षेत्र की दशा सुधारने हेतु क्षेत्र सामाजिक सहयोग की अपेक्षा रखता है। 120 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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