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अतिशय क्षेत्र पजनारी यह अतिशय क्षेत्र सागर से वाया छतरपुर-कानपुर सड़क मार्ग पर स्थित बंडा तहसील मुख्यालय से 8 किलोमीटर पहले बायीं ओर जाने वाली एक सड़क मार्ग पर स्थित है। मुख्य सड़क पर क्षेत्र का एक बोर्ड लगा है वर्तमान में यह सड़क निर्माणाधीन है। मुख्य सड़क पजनारी क्षेत्र से 5 किलोमीटर दूर स्थित है। बंडा से यह क्षेत्र पक्के सड़क मार्ग से जुड़ा है। बंडा से पजनारी की दूरी 10 किलोमीटर है। सागर से आने वालों को सड़क स्थित बोर्ड के रास्ते से व टीकमगढ़, छतरपुर से आने वालों को बंडा से पजनारी जाना चाहिये। यह क्षेत्र बंडा-बांदरी रोड़ पर स्थित है।
यह तीर्थ-क्षेत्र बाकरई नदी के तट पर स्थित छोटी सी पहाड़ी पर स्थित है। यह पहाड़ी लगभग 250 फीट ऊँची शंक्वाकार है। यह तीर्थ-क्षेत्र 10वीं, 11वीं शताब्दी का चंदेल कालीन है। पहाड़ी की तलहटी में ही एक छोटा सा गांव बसा है। नदी तट पर जैनधर्मशालायें भी बनी हुई हैं। एक मठ के भग्नावशेष तालाब के किनारे यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं। यहीं एक गुफा भी है।
पहाड़ी पर भगवान शान्तिनाथ, कुंथुनाथ व अरहनाथ का शिखरबद्ध एक भव्य जिनालय बना हुआ है; जो दूर से दिखाई पड़ता है। उक्त तीर्थंकरों के जिनालय पूरे बुंदेलखंड व अन्यत्र भी पाड़ाशाह द्वारा निर्मित कराये गये थे। ये जिनालय आज भी अहार जी, सेरोन जी, बजरंगगढ़, देवगढ़, थूबौन आदि क्षेत्रों पर स्थित हैं; किन्तु यहाँ का जिनालय उक्त जिनालयों से कई दृष्टियों से पृथक है।
1. अधिकांश उक्त जिनालय मैदानी भाग पर स्थित हैं; किन्तु यह जिनालय सुंदर शंक्वाकार पहाड़ी पर स्थित है।
2. उक्त जिनालयों में उक्त तीन तीर्थंकरों की बड़ी-बड़ी खड्गासन प्रतिमायें विराजमान हैं; जिनकी ऊँचाई 15 फीट से अधिक ही है; किन्तु इस जिनालय की ये मूर्तियां अवगाहना में छोटी तो हैं ही, मध्य की भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा पद्मासन में है जबकि पार्श्व भागों में स्थित भगवान कुंथुनाथ व अरहनाथ की प्रतिमायें खड्गासन में हैं।
3. उक्त जिनालयों के शिखरों से इस जिनालय का शिखर भी भिन्न है। 4. मूर्तियों की निर्माण कला भी उक्त से भिन्न है।
क्षेत्र दर्शनः पहाड़ी चढ़ने पर हम क्षेत्र तक पहुंचते हैं। यहाँ पुजारी व माली के आवास-कक्ष बने हैं। पहाड़ी के मध्य भव्य-जिनालय बना है; जिसमें भगवान शान्तिनाथ, कुंथुनाथ व अरहनाथ की प्रतिमायें विराजमान हैं। मध्य की भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा पद्मासन में आसीन है। जबकि पार्श्व
मध्य-भारत के जैन तीर्थ - 119