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वर्तमान में इस जिनालय का जीर्णोद्धार कर नया रूप दिया जा रहा है; इसलिये वर्तमान में इस जिनालय से मूर्तियां अस्थाई तौर पर हटाकर नीचे अस्थाई जिनालय में विराजमान कर दी गई है।
5. मानस्तंभ- प्रथम जिनालय के सामने लगभग 25 फीट ऊँचा मानस्तंभ बना हुआ है। जिसमें ऊपर चारों ओर चार जिन - प्रतिमायें विराजमान हैं । यह नवनिर्मित हैं ।
6. पार्श्वनाथ जिनालय - यह जिनालय मानस्तंभ के नजदीक स्थित है; जिसमें लगभग 2.5 फीट ऊँची भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा मूलनायक के रूप में विराजमान है । यह प्रतिमा पद्मासन में है । इसी जिनालय में लगभग 3-3 फीट ऊँची देशी पाषाण से निर्मित 5 अन्य तीर्थंकर प्रतिमायें कार्योत्सर्ग मुद्रा में आसीन हैं। भगवान मुनिसुव्रतनाथ व भगवान नेमिनाथ की प्रतिमायें भी इस जिनालय में विराजमान हैं। 5 छोटी-छोटी तीर्थंकरों की प्रतिमायें भी यहाँ प्रतिष्ठित है। दो मेरु व सात धातु से निर्मित प्रतिमायें भी इस जिनालय में आसीन हैं । पाषाण प्रतिमायें प्राचीन हैं ।
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7. यह जिनालय क्षेत्र के मुख्य दरवाज़े के पास स्थित है। यह अस्थाई जिनालय है जिसमें उन जिनालयों से लाकर मूर्तियां रखी गयी हैं; जिनका जीर्णोद्धार हो रहा है। इस जिनालय में लगभग 35 प्रतिमायें रखी हुई हैं । इनमें से लगभग 17-18 जिन - प्रतिमायें अतिप्राचीन खड़गासन मुद्रा में प्रतीक चिह्नों के साथ विराजमान हैं। ये सभी लगभग 3 से 3.5 फीट ऊँची, मनोज्ञ व कलात्मक हैं । इसी जिनालय में 6 पाषाण निर्मित प्राचीन पद्मासन मुद्रा में आसीन प्रतिमायें भी विराजमान हैं, जो भव्य, प्रभावोत्पादक व आकर्षक है। कुछ छोटी तीर्थंकर प्रतिमायें भी इस जिनालय में विराजमान हैं ।
यह तीर्थ क्षेत्र समतल मैदानी भाग पर स्थित है । इस तीर्थ क्षेत्र पर 25 दिसंबर से 1 जनवरी तक मेला भी लगता है । यहाँ मंदिरों के परिक्रमा पथ में दीवालों और दरवाजों पर भी कलात्मक पच्चीकारी देखने को मिलती है । गोमेद, अम्बिका, तीर्थंकर माता, दिक्कुमारी, पद्मावती देवी आदि की मूर्तियां भी बनी हैं।
यहाँ एक नारी की पाषाण मूर्ति भी रखी है। जिसे गोडवाना नरेश बेनु (जिनके नाम पर इस क्षेत्र को बीना के नाम से जाना जाता है) की शीलवती स्त्री कमलावती की बताया जाता है। कहा जाता है कि कमलावती को पद्मावती देवी सिद्ध थीं। देवी के प्रसाद से उनके पास एक पंखा था; जिसे तोड़ने मात्र से शत्रु सेना नष्ट हो जाती थी । यह मूर्ति अलंकरणों से सुसज्जित है व उसके एक हाथ में कटार है।
श्रद्धालुओं को इस तीर्थ क्षेत्र के दर्शन अवश्य करना चाहिये। आचार्य श्री विद्यासागर जी के आर्शीवाद से यह तीर्थ क्षेत्र अपने चरमोत्कर्ष को प्राप्त हो रहा है ।
118 ■ मध्य-भारत के जैन तीर्थ