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बनी मूर्तियां भिण्ड जिले के रत्नागिरी क्षेत्र पर भी देखने को मिलती हैं। भगवान चन्द्रप्रभु की मूर्ति पद्मासन मुद्रा में, लाल पत्थर में उत्कीर्ण है व अतिसुंदर है। इस प्रतिमा के केश कन्धों तक विस्तीर्ण हैं व हृदय कमल पर श्रीवत्स भी बना हुआ है। पाठपीठ पर उत्कीर्ण लेख से स्पष्ट होता है कि इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा सं. 1832 में मतीराम जी ने सदाशिव के राज्य में कराई थी; जो उस समय गोमिल देश में था। कहते हैं कि बड़ी मूर्ति का निर्माण भांजे ने व चन्द्रप्रभु की मूर्ति का निर्माण मामा ने कराया था; इसलिये इसे मामा-भांजे का जिनालय भी कहते हैं। इस शिखरबंद भव्य जिनालय में प्रवेश करते ही अपूर्व शान्ति का अनुभव होता है। इसी जिनालय में दाहिनी ओर श्वेत संगमरमर से निर्मित भगवान बाहुबली की लगभग 3 फीट अवगाहना की कायोत्सर्ग मुद्रा में प्रतिमा भी विराजमान है। इस जिनालय में पहले अनेक अन्य मूर्तियां भी दीवालों में लगी थीं; जिन्हें वर्तमान में वहाँ से हटाकर समीप स्थित एक अस्थाई जिनालय में विराजमान कर दिया गया है वर्तमान में इस जिनालय का जीर्णोद्धार किया जा रहा है व पृष्ठ भाग लगभग बनकर तैयार भी हो गया है। पद्मासन मुद्रा में भगवान ऋषभदेव जी की यह विशाल मूर्ति देश की विरली मूर्तियों में से एक है।
2. इस जिनालय के नीचे एक गुफानुमा भोयरा स्थित है; जिनालय में दाहिनी ओर लगी सीढ़ियों के माध्यम से प्रवेश करते हैं। इस जिनालय में अभी प्रकाश की व्यवस्था नहीं है; अतः दर्शनार्थियों को प्रकाश की व्यवस्था करने के बाद ही इस जिनालय में प्रवेश करना चाहिये। भौयरे के गर्भगृह में भगवान अजितनाथ की अतिशयकारी, भव्य व मनोज्ञ प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा देशी शिलाखंड पर उत्कीर्ण अतिप्राचीन लगभग 3 फीट अवगाहना वाली पद्मासन मुद्रा में है। इसके दोनों ओर यक्ष-यक्षिणी उत्कीर्ण हैं। ___3. तीसरा जिनालय भगवान शान्तिनाथ का है; जिसमें अतिमनोज्ञ स्वयं चलकर यहाँ अचल हुई भगवान शान्तिनाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा में लगभग 15 फीट से अधिक ऊँची प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा देशी पाषाण से निर्मित सातिसय है; जिसे स्थानीय निवासी अति श्रद्धाभाव से पूजते हैं व अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु भगवान के चरणों में अपने श्रद्धा-सुमन समर्पित करते हैं। प्रतिमा के दर्शन कर अपूर्व शान्ति तो मिलती ही है, अतिशय पुण्य का बंध भी होता है। इसी जिनालय में श्वेत संगमरमर से निर्मित भगवान पार्श्वनाथ की एक पद्मासन मूर्ति भी विराजमान है। मूर्ति कलात्मक, भव्य व अतिमनोज्ञ है। इसके गर्भगृह की दीवालों पर पहले अनेक तीर्थंकर प्रतिमायें थीं; जो वर्तमान में मंदिर के जीर्णोद्धार के चलते बाहर निर्मित एक अस्थाई जिनालय में विराजमान हैं।
4. उपरोक्त जिनालय के आगे प्राचीन कुएं के पास एक विशाल गंध-कुटी जिनालय है। इस जिनालय में पहुंचने के लिये पांच मार्ग हैं। प्रत्येक दिशा में (चारों ओर) 40-40 सीढ़ियां बनी हुई है। ऊपर चढ़ने पर इस जिनालय में पहुंचते हैं।
मध्य-भारत के जैन तीर्च - 117