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अतिशय क्षेत्र बीना बारहा अतिशय क्षेत्र बीना बारहा मध्यप्रदेश राज्य के सागर जिलान्तर्गत रहली तहसील में स्थित है। यह तीर्थ-क्षेत्र सागर नरसिंहपुर रोड पर स्थित देवरी कलॉ से मात्र 6 किलोमीटर दूर है। जबकि सागर से क्षेत्र की दूरी 70 किलोमीटर है। जो यात्री रहेली पटनागंज के दर्शन को जाते हैं, उन्हें रहेली से ही इस क्षेत्र के दर्शनों को आना चाहिये; क्योंकि यह रहली से केवल 39 किलोमीटर दूर पड़ता है। क्षेत्र तक जाने के लिये देवरी से सड़क मार्ग है।
इस तीर्थ-क्षेत्र पर अतिप्राचीन जिनबिम्ब स्थापित हैं। स्थानीय बस्ती में भी कुछ घरों की दीवालों में तीर्थंकर प्रतिमायें चिनी हुई हैं। आसपास के खेतों में भी परासंपदा बिखरी पड़ी है। यह क्षेत्र एक विशाल परिसर में स्थित है। जिसमें यात्रियों को रूकने के लिये धर्मशालायें बनी हैं। क्षेत्र पर चाय, नाश्ता, भोजन, दूध आदि सभी कुछ मुफ्त में उपलब्ध कराया जाता है।
इस क्षेत्र के अतिशयों के बारे में अनेक जनश्रुति प्रचलित हैं। बीना ग्राम के निकट मलखेड़ा ग्राम के निवासी एक जैन परिवार के मुखिया बंजी करने बीना जाया करते थे। रास्ते में उन्हें एक बार एक स्थान पर ठोकर लगी। उसी रात उन्हें स्वप्न आया कि जिस स्थान पर तुम्हें ठोकर लगी है; उसी स्थान पर खुदाई करो तो तुम्हें जिन-प्रतिमा के दर्शन होंगे; तीन दिन तक वे अविरल अकेले ही खुदाई करते रहे। उसी रात उन्हें फिर स्वप्न आया कि अब तुम्हें खुदाई में भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा के दर्शन होंगे तुम उन्हें जहाँ विराजमान करना चाहो वहाँ चले जाना। प्रतिमा अपने आप तुम्हारे पीछे पीछे चलकर वहाँ पहुँच जायेगी। किन्तु इस बीच मुड़कर पीछे मत देखना। दूसरे दिन ऐसा ही हुआ। खुदाई में भगवान शान्तिनाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित लगभग 15 फीट ऊँची प्रतिमा निकली। उक्त प्रतिमा के दर्शन कर उनका हृदय कमल खिल गया। वे गदगद् हो प्रभु भक्ति में लीन हो गये। उनकी समग्र चेतना भगवान के चरणों में समर्पित हो गई। वे प्रसन्नचित हो अल्हादिक मुद्रा में चल दिये। किन्तु थोड़ी दूर जाने पर उन्होंने पीछे मुड़कर देख लिया प्रतिमा वहीं अचल हो गई। आज इसी स्थान को बीना बारा (बारह) तीर्थ-क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। प्रतिमा के ठहरने के स्थान पर भव्य जिनालय बनवा दिया गया। सं. 1803 में इस जिनालय का निर्माण कराया गया। तीर्थ-क्षेत्र पर वर्तमान में छः जगह दर्शन हैं___1. भगवान ऋषभदेव जिनालय- इसे मामा भांजे का जिनालय भी कहते हैं। इस जिनालय में मूलनायक के रूप में भगवान ऋषभनाथ की पदमासन मुद्रा में विशालकाय प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा लगभग 13 फीट ऊँची व इतनी ही चौड़ी अतिभव्य मनोज्ञ है। बायें हाथ की दीवाल में लगभग 7 फीट ऊँची देशी पाषाण से निर्मित अतिमनोज्ञ भगवान चन्द्रप्रभु की प्रतिमा विराजमान है। भगवान ऋषभनाथ की विशाल प्रतिमा ईंट, चूने व गारे की बनी है। ऐसी ही चूने गारे से 116 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ