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की प्रतिमा भी इसी वेदिका पर आसीन है। इसी जिनालय में 50 से अधिक अन्य तीर्थंकर प्रतिमायें भी आसीन हैं।
8. कुछ सीढ़ियाँ चढ़ने के उपरान्त पार्श्व भाग में एक छोटे से जिनालय में भी जिनबिम्ब के दर्शन होते हैं
9. जब हम इस परिसर से आगे के दूसरे परिसर में प्रवेश करते हैं तो प्रवेश द्वार के दोनों ओर प्राचीन प्रतिमायें रखीं हुई हैं। एक ओर विद्यमान बीस तीर्थंकरों को प्रदर्शित करने वाला प्रस्तर स्तंभ विद्यमान है। यह देशी पाषाण पर उत्कीर्ण है। ____10. दरवाज़े के दूसरी ओर प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ की प्रतिमा आसीन है; जिनके दर्शन कर श्रद्धालु अपने आपको धन्य मानते हैं। ये दोनों जिन-प्रतिमायें असुरक्षित व अव्यवस्थित रूप में हैं।
11. अजितनाथ जिनालय- इस जिनालय में भगवान अजितनाथ की देशी पाषाण पर उत्कीर्ण लगभग 2.5 फीट ऊँची प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में विराजमान है।
12. मल्लिनाथ जिनालय- इस जिनालय में भगवान मल्लिनाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा में प्रतिमा आसीन है।
13. संभवनाथ जिनालय- इस जिनालय में भी देशी पाषाण निर्मित भगवान संभवनाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा में प्रतिमा स्थापित है।
उपरोक्त तीनों जिनालयों की रचना समान किन्तु अति प्राचीन है। ये जिनालय एक ही समय में बने प्रतीत होते हैं। लगता है पंचामृत अभिषेक होते रहने के कारण ये प्रतिमायें कुछ काली व चिकनी हो गई हैं। ये प्रतिमायें इस क्षेत्र की प्राचीनतम प्रतिमायें प्रतीत होती हैं और 10वीं शताब्दी के पूर्व की प्रतीत होती है। मूर्तियाँ अतिभव्य व मनोज्ञ हैं। यह जिनालय संकीर्ण हैं व केवल खड़े रहने भर का स्थान इनमें हैं।
. 14. सहसकूट चैत्यालय- यह जिनालय इस तीर्थ-क्षेत्र की पहचान है। विशाल साहस्रकूट चैत्यालय लगभग 32 फीट की गोलाई में 15 फीट व्यास का व 9 फीट से अधिक ऊँचाई वाला है। इस चैत्यालय में 1008 जिनबिम्ब उत्कीर्ण हैं। संभवतः यह अत्यन्त प्राचीन व देश का सबसे बड़ा सहस्रकूट चैत्यालय है; जिसमें पद्मासन व कायोत्सर्ग मुद्रा दोनों आसनों में प्रतिमायें विराजमान हैं। इसमें प्रतिमाओं का आकार भी अन्य चैत्यालयों से बड़ा है। यह संपूर्ण आकृति देशी पाषाण से निर्मित हैं; चित्ताकर्षक हैं व अपने आप में अनोखी है। इस चैत्यालय के परिक्रमा-पथ में बाईं ओर स्थित दीवाल में तीन अन्य प्राचीन जिन-प्रतिमायें विराजमान हैं। इनमें से एक प्रतिमा भगवान पार्श्वनाथ की है। शेष प्रतिमाओं पर चिह्न नहीं हैं। ____15. इस छोटे से जिनालय में देशी पाषाण से निर्मित भगवान आदिनाथ, सुपार्श्वनाथ व महावीर स्वामी के जिनबिम्ब विराजमान हैं।
112. मध्य-भारत के जैन तीर्थ