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________________ यह तीर्थ-क्षेत्र सममतल भू-भाग पर एक विशाल परिसर में स्थित है। जिसमें लगभग 31 जिनालय हैं। सभी दर्शन पास-पास हैं। इस तीर्थ-क्षेत्र पर सबसे प्राचीन प्रतिमा सं. 10वीं शताब्दी में प्रतिष्ठित भगवान आदिनाथ की है। सहस्रकूट चैत्यालय व उसके बायें भाग पर स्थित जिनालय में विराजमान खड्गासन/ पद्मासन तीर्थंकर मूर्तियां उससे भी प्राचीन प्रतीत होती हैं। यहाँ देश का सबसे बड़ा सहस्रकूट चैत्यालय है। भगवान महावीर स्वामी की लगभग 15 फीट ऊँची दुर्लभ पद्मासन प्रतिमा का विराजमान रहना, इस मूल प्रतिमा के नीचे एक अन्य दिगंबर प्रतिमा का आसीन होना, प्राचीन नंदीश्वर द्वीप, पंचमेरु व समवशरण की रचनाओं का होना, भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा के सिर पर 1008.नागदेवों की छाया का होना एवं उनके नीचे दायें व बायें भी पार्श्वनाथ भगवान की अन्य प्रतिमाओं का होना इस क्षेत्र के सौन्दर्य में अत्यधिक अभिवृद्धि करते हैं। यहाँ त्रिमूर्ति जिनालय भी हैं। वंदना क्रम के अनुसार क्षेत्र स्थित जिनालय इस प्रकार हैं। ___1. शान्तिनाथ जिनालय- श्रद्धालु जैसे ही मंदिर परिसर में प्रवेश करता है; उसे सर्वप्रथम शान्तिप्रदाता भगवान श्री शान्तिनाथ की 3.5 फीट अवगाहना की पद्मासन प्रतिमा के दर्शन होते हैं। यह प्रतिमा देशी पाषाण से निर्मित प्राचीन है। इस प्रतिमा का प्रतिष्ठाकाल सं. 1864 है। 2. मल्लिनाथ जिनालय- इस जिनालय में उपरोक्त आकार प्रकार की ही भगवान मल्लिनाथ की मनोज्ञ प्रतिमा विराजमान है। 3. गंधकुटी- इस गंधकुटी में उच्च आसन पर तीर्थंकर प्रतिमा विराजमान है। 4. समवशरण रचना- यह अत्यन्त प्राचीन अद्भुत रचनाओं में से एक है। यद्यपि रचना छोटी है; किन्तु कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। 5. नंदीश्वर द्वीप रचना- यहाँ स्थित नंदीश्वर द्वीप की रचना कोनी जी स्थित नंदीश्वर द्वीप की रचना से भिन्न है व अनोखी है। नंदीश्वर द्वीप के मेरु रंगीन है। 6. पंचमेरु रचना- पास ही पंचमेरु की रचना भी हैं। ये सभी रचनायें प्राचीन, दुर्लभ व देखरेख के अभाव में असुरक्षित व जीर्ण-शीर्ण हालत में हैं। इनके समुचित संरक्षण की आवश्यकता है। 7. मुनिसुव्रतनाथ जिनालय- इस जिनालय में मूलनायक भगवान मुनिसुव्रतनाथ की कत्थई वर्ण की लगभग 4 फीट अवगाहना की देशी पाषाण से निर्मित अतिशयकारी प्रतिमा विराजमान है। इस जिनालय की रचना-शैली अन्यत्र स्थित जिनालयों से भिन्न है। मूल ऊपरी सिंहासन पर कुल 6 तीर्थंकर प्रतिमायें विराजमान हैं। जो लगभग समान अवगाहना वाली हैं। इनमें से दो प्रतिमायें भगवान पार्श्वनाथ की भी हैं। सभी जिनबिम्बों के ऊपर शिखरों की रचना पीछे स्थित दीवाल में ही की गई हैं। यहीं मूगिया वर्ण की भगवान शान्तिनाथ की अतिसुंदर मनोहारी प्रतिमा विराजमान है। लगभग 10वीं सदी की भगवान आदिनाथ मध्य-भारत के जैन तीर्व
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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