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प्रवेश द्वार के बायीं ओर एक गैलरी व दो प्राचीन कमरे बने हुये हैं। गैलरी में दो आदमकद रक्षक देवों की प्रतिमायें रखीं हुईं है । दो कक्षों में तीर्थ रक्षक देव भैरों बाबा की सिंदूर चढ़ी प्रतिमायें रखीं है । इन्हीं कक्षों में लगभग अनेक खड्गासन प्राचीन प्रतिमायें जो बलुआ पत्थर से निर्मित हैं; रखीं हैं । कुछ खंडित प्रतिमायें भी यहाँ रखीं है । प्राचीन बड़े बाबा के जिनालय एवं उसके पीछे स्थित प्राचीन जिनालयों को हटाने से प्राप्त हुई (संभवतः ) ये प्रतिमायें प्रतीत होती है; जो अतिप्राचीन हैं। इनमें से कुछ के पामूल में प्रशस्तियां भी नहीं हैं । कुछ प्राचीन पद्मासन प्रतिमायें भी यहाँ रखीं हैं।
17. यह वह स्थल है; जहाँ पहले बड़े बाबा का गर्भ में स्थित (नोंयरे रूप में) जिनालय स्थित था । आज ये सममतल जगह के रूप में स्थित है; जहां दीप जलता रहता है। यहां अब ध्यान केन्द्र बनाने हेतु बोर्ड लगा है।
18. बड़े बाबा का नवनिर्मित जिनालय पूर्व वर्णित प्राचीन बड़े बाबा को उनके प्राचीन जिनालय से यहाँ इस नवनिर्मित जिनालय में लाकर विराजमान किया गया है । यह पद्मासन जिन - प्रतिमा भगवान आदिनाथ की है। इस जिनालय के गर्भगृह का निर्माण लगभग पूरा हो गया है। बाहरी भाग का निर्माण कार्य जारी है ।
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भगवान ऋषभदेव की यह प्रतिमा लगभग 13 फीट ऊँची व 12 फीट चौड़ी पद्मासन मुद्रा में है । यहाँ आकर बड़े बाबा के दर्शन कर यात्रियों की सारी थकान रफूचक्कर हो जाती है व दर्शनार्थियों के सिर स्वतः ही श्रद्धावनत हो जाते हैं । यहाँ यात्री अपूर्व आनंद तथा सुख शान्ति का अनुभव करते हैं। भगवान ऋषभदेव के सिंहासन से कुछ बाहर की ओर जिनालय के दायें व बायें भागों में भगवान पार्श्वनाथ की प्राचीन खड्गासन प्रतिमाओं को प्रतिष्ठित किया गया है। ये खड्गासन प्रतिमायें लगभग 12 फीट ऊँची भव्य व अति मनोहारी है। मूलनायक भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा के हृदय स्थल पर श्री वत्स सुशोभित है वहीं कंधे पर दोनों ओर केशों की जटायें लटक रहीं हैं। सिंहासन के सिंह पापीठ के दोनों ओर उत्कीर्ण हैं ।
पादपीठ के अधोभाग पर गोमुख यक्ष व चक्रेश्वरी यक्षिणी के रूप में उत्कीर्ण हैं । यक्ष द्विभुजी व यक्षिणी चतुर्भुजी हैं । यक्ष के एक हाथ में परसु व दूसरे हाथ में बिजौरा स्थित है; जबकि यक्षिणी के दो हाथों में चक्र, एक में शंख व एक हाथ वरद मुद्रा में है। प्रतिमा के अधोभाग में यद्यपि कोई प्रतीक चिह्न नहीं है; किन्तु बालों की लटें व यक्ष-यक्षिणी की मूर्तियाँ इस विशालकाय प्रतिमा को भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा सिद्ध करने के लिये पर्याप्त हैं ।
इस जिनालय तक पहुँचने के लिये दो मार्ग हैं। एक सीढ़ियों का मार्ग; जो तलहटी स्थित जिनालयों से सीधा इस जिनालय तक जाता है। दूसरा पक्का सड़क
मध्य-भारत के जैन तीर्थ ■ 105