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________________ 7-8. इस जिनालय के बाहर चारों कोनों पर छोटे-छोटे देवालय बने हैं । इनमें भगवान आदिनाथ व लाछन रहित कुछ प्रतिमायें विराजमान हैं। ये प्रतिमायें भी प्राचीन है; व प्रत्येक लगभग 1.7 फीट ऊँची हैं व सभी खड्गासन मुद्रा में हैं । 9. संभवनाथ जिनालय - जिनालय के पीछे पहाड़ी के अंतिम छोर पर स्थित इस जिनालय में तीसरे तीर्थंकर भगवान संभवनाथ की पद्मासन मूर्ति विराजमान है। 10. इस जिनालय के दर्शन कर यात्री पुनः वापिस लौटता है व एक दालाननुमा खुले कमरे में स्थित प्राचीन चरण चिह्न पर अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित कर आगे की ओर बढ़ता है। 11. पार्श्वनाथ जिनालय - इस भव्य जिनालय में मूलनायक के रूप में भगवान पार्श्वनाथ की कृष्ण वर्ण की पद्मासन प्रतिमा (सं. 1902 में प्रतिष्ठित ) विराजमान है। इसकी अवगाहना लगभग 3 फीट है। इसी जिनालय में मूलनायक के पार्श्व भागों में भगवान मुनिसुव्रतनाथ व भगवान आदिनाथ की प्रतिमायें विराजमान हैं। ये प्रतिमायें क्रमशः श्वेत व श्याम वर्ण की हैं व 2.25 फीट की अवगाहना वाली सं. 1902 में प्रतिष्ठित हैं । 12. पार्श्वनाथ जिनालय - इस जिनालय में सं. 1888 में प्रतिष्ठित लगभग 3 फीट ऊँची श्याम वर्ण की भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा मूलनायक के रूप में विराजमान है। पार्श्व भागों में भगवान आदिनाथ व चन्द्रप्रभु तीर्थंकरों की श्वेत वर्ण की 2.5 फीट ऊँची पद्मासन मुद्रा में प्रतिमायें स्थापित हैं। इसका प्रतिष्ठाकाल सं. 1888 है। 13. नेमिनाथ जिनालय - इस जिनालय में मध्य में मूलनायक के रूप में नेमिनाथ भगवान की व पार्श्व भागों में आदिनाथ व महावीर स्वामी की पद्मासन प्रतिमायें विराजमान हैं। सं. 1882 में प्रतिष्ठित ये जिनबिम्ब क्रमशः श्याम, श्वेत व श्वेत वर्ण के हैं। मूलनायक की प्रतिमा लगभग 3 फीट ऊँची है। 14. पार्श्वनाथ जिनालय - इस जिनालय में प्रतिष्ठित सभी जिनबिम्ब काले पाषाण से निर्मित हैं। मध्य में पार्श्वनाथ व पार्श्व भागों में आदिनाथ व महावीर स्वामी की पद्मासन प्रतिमायें विराजमान हैं। इनका प्रतिष्ठाकाल सं. 1871 है। मूलनायक की प्रतिमा 4 फीट ऊँची है। सभी प्रतिमायें पद्मासन मुद्रा में आसीन हैं । 15. पार्श्वनाथ जिनालय - मध्य में मूलनायक के रूप में पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा प्रतिष्ठित है; जबकि पार्श्व भागों में श्वेत धवल प्रतिमायें भगवान अजितनाथ व संभवनाथ की है। मूलनायक की प्रतिमा श्यामवर्ण की है। सभी प्रतिमायें पद्मासन में आसीन है। 16. यह जिनालय शिखर युक्त नहीं है। एक दूसरे 'पर्वत के ऊपर स्थित ' 104 ■ मध्य-भारत के जैन तीर्थ
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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